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चोल साम्राज्य का वो मंदिर जो बना द्रविड़ वास्तुकला का प्रतीक, ग्रेनाइट के पत्थरों से किया गया निर्माण, जानें मंदिर का नाम

Anjali Tyagi
8 Aug 2025 8:00 AM IST
चोल साम्राज्य का वो मंदिर जो बना द्रविड़ वास्तुकला का प्रतीक, ग्रेनाइट के पत्थरों से किया गया निर्माण, जानें मंदिर का नाम
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नई दिल्ली। बृहदीश्वर मंदिर, जिसे 'राजराजेश्वरम' के नाम से भी जाना जाता है, 11वीं शताब्दी में चोल शासक राजा राजराजा चोल प्रथम द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर 216 फीट ऊंचा है और इसमें 80 टन का शिखर है। मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट पत्थरों से किया गया है, जो उस समय के आसपास उपलब्ध नहीं थे, जिससे यह और भी प्रभावशाली हो जाता है। मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है, जिसमें एक विशाल विमान, गोपुरम और एक गर्भगृह है जिसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि चोल काल की वास्तुकला, कला और संस्कृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है। मंदिर में चोल और नायक काल के भित्तिचित्र भी हैं। बृहदीश्वर मंदिर, गंगईकोंडचोलपुरम मंदिर और ऐरावतेश्वर मंदिर के साथ, 'महान जीवित चोल मंदिर' में से एक माना जाता है।

मुख्य बातें

निर्माण- 1003 से 1010 ईस्वी के बीच।

स्थान- तमिलनाडु, भारत।

समर्पित- भगवान शिव।

शैली- द्रविड़ वास्तुकला।

मंदिर की मुख्य विशेषताएं

1. विशाल विमान (शिखर) - मंदिर का विमान (शिखर) 216 फीट (66 मीटर) ऊंचा है और यह दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर शिखरों में से एक है।

2. 80 टन का - विमान के ऊपर 80 टन वजनी एक अखंड ग्रेनाइट गुंबद है, जिसे एक ही पत्थर से तराशा गया है।

3. ग्रेनाइट का उपयोग- मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट पत्थरों से बना है, जिनमें से कुछ 70-100 किलोमीटर दूर से लाए गए थे।

4. इंटरलॉकिंग तकनीक- पत्थरों को बिना किसी सीमेंट या चूने के इस्तेमाल के, खांचे काटकर आपस में फंसाया गया है।

5. नंदी की मूर्ति- मंदिर में भगवान शिव के पवित्र बैल नंदी की एक विशाल मूर्ति है, जो एक ही पत्थर से बनी है।

6. शिलालेख और भित्तिचित्र- मंदिर में शिलालेख और भित्तिचित्र हैं जो चोल काल के इतिहास, संस्कृति और कला को दर्शाते हैं।

7. धार्मिक महत्व- मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।

8. यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल- बृहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।

मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य

- मंदिर का निर्माण बिना किसी नींव के किया गया था।

- मंदिर के शिखर की छाया दोपहर में जमीन पर नहीं पड़ती है, जो एक रहस्य है।

- मंदिर के निर्माण में 3000 हाथियों का इस्तेमाल किया गया था।

- मंदिर में 64 शिलालेख हैं, जिनमें से 60 चोल शासक राजराजा चोल प्रथम के हैं।

शिखर पर स्थित है एक स्वर्णकलश

बता दें कि इस मंदिर की एक और विशेषता ये है कि इसके शिखर पर एक स्वर्णकलश स्थित है और ये स्वर्णकलश जिस पत्थर पर स्थित है, उसका वजन करीब 80 टन बताया जाता है, जो एक ही पत्थर से बना हुआ है। अब इतने वजनदार पत्थर को मंदिर के शिखर पर कैसे ले जाया गया होगा, यह अब तक एक रहस्य ही बना हुआ है, क्योंकि उस समय तो क्रेन तो नहीं होते थे। कहते हैं कि इस गुंबद की परछाई धरती पर नहीं पड़ती। हालांकि, इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है।

मंदिर के गुम्बद की छाया जमीन पर नहीं पड़ती

इस मंदिर की एक और खास विशेषता है कि इसके गोपुरम (पिरामिड जैसी आकृति जो दक्षिण भारत के मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित होता है) की छाया जमीन पर नहीं पड़ती है। जिसके बारे में आज भी वैज्ञानिक ठीक से कुछ नहीं बता पाते हैं कि आखिर ऐसा चमत्कार कैसे संभव हो सका। दरअसल मंदिर का निर्माण तन्जावुर कला के अंतर्गत किया गया था। इसके साथ ही मंदिर के गर्भ गृह में चारों ओर दीवारों पर भित्ती चित्र बने हुए हैं, जिनमें भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाया हुआ है।

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