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इस जगह पर है कलियुग का वैकुंठ, घोर तपस्या के बाद स्वयं प्रकट हुए थे भगवान वेंकटेश्वर, जानें क्या है नाम

अमरावती। दक्षिण भारत के ज्यादातर मंदिर भगवान मुरुगन और भगवान विष्णु को समर्पित हैं। साथ ही भगवान शिव और पार्वती के भी समर्पित मंदिर हैं, लेकिन सबसे ज्यादा भगवान मुरुगन और भगवान विष्णु के अलग-अलग अवतारों की पूजा की जाती है। आंध्र प्रदेश में ऐसा ही मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है और मंदिर की वास्तुकला और एरिया बहुत उत्कृष्ट हैं।
प्रमुख बिंदु:
कलियुग का वैकुंठ: तिरुमाला स्थित श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर को भक्तों द्वारा 'भू वैकुंठ' या 'कलियुग का वैकुंठ' माना जाता है।
स्वयं प्रकट: यह माना जाता है कि भगवान विष्णु ने यहां भगवान वेंकटेश्वर के रूप में स्वयं अवतार लिया या प्रकट हुए, ताकि वे कलियुग में अपने भक्तों को आशीर्वाद दे सकें और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखा सकें।
घोर तपस्या: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान वेंकटेश्वर ने यहां लोगों के पापों को दूर करने और धर्म की स्थापना के लिए तपस्या की थी। यह मान्यता भक्तों के लिए मंदिर के महत्व को बढ़ाती है और इसे एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल बनाती है।
स्वयंभू भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा
अगर मंदिर की स्थापना की बात करें तो माना जाता है कि महान ऋषि द्वारका ने चींटियों के टीले पर बैठकर सालों तक भगवान विष्णु की पूजा की थी और तब वहां स्वयंभू भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा प्रकट हुई थी. प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बाद 11वीं शताब्दी में म्यावलवरम जमींदारों ने मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर भक्तों को दर्शन देते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. भक्तों के बीच श्री वेंकटेश्वर को कलियुग वैकुंठ वास के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान वेंकटेश्वर की आंखें बंद रहती हैं
भगवान वेंकटेश्वर की आंखें बंद रहती हैं। भगवान वेंकटेश्वर को उनकी चमकीली और शक्तिशाली नेत्रों के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि प्रभु के नेत्रों में ब्रह्मांडीय ऊर्जा होने के कारण लोग उनकी आंखों में सीधा नहीं देख सकते हैं। इसी वजह से प्रभु की आंखों को सफेद मुखौटे से ढक दिया जाता है। इस मुखौटे को गुरुवार के दिन बदला जाता है।




