Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य समाचार

कर्तव्यों की याद दिलाता एक पेड़!

DeskNoida
5 Jun 2025 9:51 PM IST
कर्तव्यों की याद दिलाता एक पेड़!
x
यह बात 1993-94 की है। सहरसा, बिहार के सुपर बाजार में हम सभी के अग्रज, गांधीवादी विचारधारा से जुड़े विनोद केडिया जी की एक दुकान थी।

सुशील देव

अब कौन देता है किसी को पेड़ लगाने की सीख? कौन समझाता है प्रकृति की अहमियत? मुझे याद है, कॉलेज के दिनों में जब हम अपने शहर में नुक्कड़ नाटक किया करते थे, तो एक साथी ने कहा था कि हम सभी भले ही भ्रष्टाचार और सामाजिक विडंबनाओं के खिलाफ नाटक करते हैं, पर पर्यावरण संरक्षण और संतुलन के लिए भी हमें एक नाट्य प्रस्तुति तैयार करनी चाहिए। तब हमने पहली बार 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर एक नाटक किया था। उस प्रस्तुति ने शहर के रंगकर्मियों के बीच पर्यावरण दिवस पर नाटक, सेमिनार और गोष्ठियों के प्रति जागरूकता बढ़ाई।

सबसे बड़ी बात यह रही कि हमने रंगकर्मियों के एक समूह ने उस दिन एक ऐसा पेड़ लगाने का निश्चय किया, जो हमेशा हमारी स्मृतियों में बना रहे—हमारे सामूहिक प्रयास की प्रतीक बनकर और पर्यावरण सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का संदेश देता रहे। फख्र है कि वह पेड़ आज घना और छायादार हो चुका है। उसकी ठंडी छांव आज भी बार-बार हमें हमारे कर्तव्यों की याद दिलाती है।

यह बात 1993-94 की है। सहरसा, बिहार के सुपर बाजार में हम सभी के अग्रज, गांधीवादी विचारधारा से जुड़े विनोद केडिया जी की एक दुकान थी।उन्हीं की प्रेरणा और मदद से हमने वहां एक पीपल का पौधा लगाने का निर्णय लिया। सभी की सहमति से रोपण हुआ और उस पेड़ का नाम हमने अपनी नाट्य संस्था के नाम पर ‘आह्वान ट्री’ रख दिया। उस पौधे की देखभाल मुख्यतः विनोद भैया ने की। आज जब लोग उसकी छांव में बैठते हैं तो एक विशेष आत्मसंतोष होता है।

उन दिनों को याद कर आज सोचता हूं, काश हम एक की बजाय 100 पौधे लगाते! बाद में हमने पर्यावरण दिवस पर कई कार्यक्रमों में भागीदारी की, लेकिन पेड़ लगाने के किसी बड़े अभियान का हिस्सा नहीं बन सका। दिल्ली में रहते हुए 29 साल हो गए हैं। सोचता तो बहुत हूं कि पर्यावरण के लिए कुछ करूं, लेकिन कंक्रीट के इस जंगल में जगह कहां है? कुछ बड़ी सोसाइटियों को छोड़ दें तो बाकी कॉलोनियों में पौधे लगाने की जगह नहीं बची। घनी आबादी वाली तंग गलियों में जीवन मानो घुट-घुट कर कटता है। हम भी इस नियति से जूझ रहे हैं। ऐसे में सोचता हूं, क्या पर्यावरण का भला वास्तव में संभव है?कर्तव्यों की याद दिलाता एक पेड़!

Next Story