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उत्तर प्रदेश

लखनऊ: करीब डेढ़ साल बाद खुलेगा रूमीगेट, मुख्य दरारें भरने का काम पूरा, दिसंबर 2022 से बंद था

Abhay updhyay
19 July 2023 12:30 PM GMT
लखनऊ: करीब डेढ़ साल बाद खुलेगा रूमीगेट, मुख्य दरारें भरने का काम पूरा, दिसंबर 2022 से बंद था
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने रूमीगेट की दशकों पुरानी मुख्य दरारों को भरने का काम पूरा कर लिया है, जिसके बाद इसे मुहर्रम के जुलूस के लिए खोल दिया जाएगा. रूमीगेट में दरारें आने के कारण इस पर खतरा मंडरा रहा था. इसकी सजावट भी टूटने लगी थी, जिसके बाद गेट के मरम्मत का काम शुरू किया गया।अधीक्षण पुरातत्वविद् आफताब हुसैन ने बताया कि रूमीगेट की मुख्य दरारें करीब तीन से चार माह में भर गई हैं। इसकी जर्जर हालत को देखते हुए जीर्णोद्धार का निर्णय लिया गया। इस परियोजना पर सात महीने पहले काम शुरू हुआ था. अधीक्षक ने बताया कि जीर्णोद्धार से पहले हर छोटी-बड़ी दरार को देखा गया और उसका उल्लेख भी किया गया, ताकि मरम्मत का कार्य ठीक से हो सके.मुहर्रम जुलूस को देखते हुए सरकार के आदेश पर रास्ता खोला जा रहा है, लेकिन मुख्य द्वार को छोड़कर बाकी काम जारी रहेगा. शेष अलंकरण कार्य अगले चार से पांच माह में पूरा होने की उम्मीद है। अब तक करीब 50 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। उन्होंने बताया कि इसकी मरम्मत के लिए नींबू सुरखी, उड़द दाल, बेल गिरी का रस आदि के विशेष मिश्रण का उपयोग किया जा रहा है. प्लास्टर का यह मिश्रण काफी टिकाऊ होता है.मालूम हो कि दिसंबर 2022 में रूमी गेट के नीचे से निकलने वाले रास्ते को बंद कर दिया गया था. दरारों के कारण ऐसा किया गया। वहां से निकलने वाले लोगों के लिए बगल से रास्ता बनाया गया था.

इसे बनाने में उस दौर में एक करोड़ रुपये खर्च हुए थे.

रूमी दरवाज़ा को लखनऊ की पहचान वाली इमारत माना जाता है। जो अपनी खूबसूरत बनावट के लिए भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है। रूमी दरवाजा और इमामबाड़ा का निर्माण नवाब आसफुद्दौला ने 1784 में शुरू कराया था. इसका निर्माण कार्य 1786 में पूरा हुआ था. अनुमान है कि उस वक्त इसके निर्माण की लागत एक करोड़ थी.गौरतलब है कि जब रूमी दरवाजा बनाया जा रहा था तो अवध में अकाल पड़ा था. इसलिए भूखों को रोटी देने के मकसद से आसफुद्दौला ने इन इमारतों की विस्तृत योजना बनवाई थी. ताकि निर्माण की मजदूरी के बदले उन्हें कुछ पैसे दिये जा सकें.इमामबाड़ा और रूमी दरवाज़ा की वास्तुकला किफ़ायतुल्लाह नवीस नामक एक मानचित्रकार ने की थी। यह वही कारीगर था जिसने रूमी दरवाजे के अर्धचंद्राकार अर्ध-गुंबद और इमामबाड़े की लदी छत के पुश्ते को संभाला था।

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