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उत्तराखंड

उत्तराखंड: भारतीय वन्यजीव संस्थान देशभर में जुगनूओं की संख्या पर कर रहा नजर, धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं जुगनू

Abhay updhyay
7 July 2023 11:17 AM GMT
उत्तराखंड: भारतीय वन्यजीव संस्थान देशभर में जुगनूओं की संख्या पर कर रहा नजर, धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं जुगनू
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देश और दुनिया भर में सीमेंट के कंक्रीट निर्माण कार्य के कारण भूमि कम होती जा रही है। इसके कारण धीरे-धीरे जुगनू खत्म हो रहे हैं। अंबर फाउंडेशन के अध्यक्ष और शोध छात्र के साथ भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक जुगनू की संख्या का पता लगा रहे हैं। उनका कहना है कि जुलाई 2021 से लेकर अब तक दो सर्वे हो चुके हैं, जबकि इस साल तीसरा सर्वे इस सप्ताह चल रहा है.भारतीय वन्यजीव संस्थान एक अन्य संस्था के साथ मिलकर देश भर में जुगनुओं की संख्या का पता लगा रहा है। संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार, दुनिया में जुगनू की लगभग 2200 प्रजातियाँ हैं, जबकि अभी भी कई की खोज की जानी बाकी है। देश और दुनिया भर में तेजी से हो रहे निर्माण कार्यों के कारण ये धीरे-धीरे उनकी यादों की तरह खत्म हो रहे हैं।

लोगों को इनके बारे में जागरूक करने और इन पर अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए इनकी संख्या का पता लगाया जा रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार, जुगनू स्वस्थ वातावरण के जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। उनकी उपस्थिति मिट्टी की अच्छी संरचना, पानी की गुणवत्ता आदि का संकेत देती है।इसके अलावा जुगनू बगीचे के कीटों जैसे स्लग, घोंघे और अन्य छोटे प्राणियों के संभावित शिकारी होते हैं और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं। इनका जीवन चक्र एक से दो साल का ही होता है, जो पत्तियों और मिट्टी पर अंडे देते हैं। उनके अंडों से तीन से चार सप्ताह में लार्वा निकल आते हैं।

जुलाई 2021 से अब तक दो सर्वेक्षण किये जा चुके हैं

लार्वा आमतौर पर पत्तियों की निचली सतह और नम मिट्टी में रहना पसंद करते हैं। लेकिन, देश और दुनिया भर में सीमेंट के कंक्रीट निर्माण कार्य के चलते जमीन कम होती जा रही है। इसके कारण धीरे-धीरे जुगनू खत्म हो रहे हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक अंबर फाउंडेशन की अध्यक्ष और शोध छात्रा निधि राणा के साथ मिलकर जुगनूओं की संख्या का पता लगा रहे हैं। उनका कहना है कि जुलाई 2021 से अब तक दो सर्वे हो चुके हैं, जबकि इस साल तीसरा सर्वे इस सप्ताह चल रहा है.

इसके लिए लोगों का सहयोग भी लिया जा रहा है। संस्थान की ओर से ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से वन विभाग, विश्वविद्यालय, पर्यावरण कार्यकर्ताओं समेत पांच हजार से ज्यादा लोगों और संस्थानों से उनके आसपास जुगनूओं की जानकारी ली जा रही है। अंबर फाउंडेशन की अध्यक्ष निधि राणा का कहना है कि दून घाटी के जुगनुओं की विविधता और उनकी जनसंख्या पर मानवजनित दबाव के प्रभाव का भी आकलन किया जा रहा है।

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