डॉ. चेतन आनंद
नई दिल्ली। हर साल सर्दियों के आते ही दिल्ली-एनसीआर एक बार फिर “गैस चैंबर” जैसी स्थिति का सामना करता है। हवा में घुला स्मॉग, धुंध की मोटी परत, धूप का न पहुंच पाना, सुबह-शाम की जलन और सांस लेने में कठिनाई, ये सब सर्दियों के प्रदूषण की पहचान बन चुके हैं। भारत के कई शहर प्रदूषण से जूझते हैं, पर दिल्ली-एनसीआर की भूगोल, जनसंख्या, उद्योग, वाहन-भार और मौसम इसे सबसे जोखिमपूर्ण क्षेत्रों में शामिल कर देते हैं।
1. सर्दियों में प्रदूषण क्यों बढ़ता है?
- तापमान-इन्वर्शन-सर्दियों में पृथ्वी का तापमान तेजी से गिरता है और ऊपर की हवा अपेक्षाकृत गर्म रहती है। इस स्थिति में प्रदूषक कण ऊँचाई की ओर नहीं उठ पाते और जमीन के पास ही फँस जाते हैं। हवा की परतें उलट जाती हैं, जिसे तापमान-इन्वर्शन कहते हैं। यह प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देता है।
- हवा की गति बहुत कम होना-सर्दियों में उत्तरी भारत में हवा की गति कम होने से कणों का फैलाव रुक जाता है। प्रदूषक फैलने के बजाय एक ही क्षेत्र में जमते रहते हैं।
- स्मॉग-कोहरा पहले से मौजूद होता है। जब उसके साथ वाहन, औद्योगिक धुआँ, धूल, एसओटू-एनओएक्स, पीएम 2.5 जैसे कण जुड़ जाते हैं, तो स्मॉग बनता है, जो अधिक जहरीला और सघन होता है।
- पराली जलाना-अक्टूबर-नवंबर में पंजाब-हरियाणा में खेतों की पराली जलाने से भारी मात्रा में पीएम 2.5 और सीओटू दिल्ली की ओर पहुँचती है। सर्दियों की शुरुआत में हवा पश्चिम-उत्तर-पश्चिम से चलती है, इसलिए इसका अधिक प्रभाव दिल्ली-एनसीआर पर पड़ता है।
- वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन-दिल्ली-एनसीआर में 1 करोड़ से अधिक वाहन और बड़ी संख्या में छोटे-बड़े उद्योग हैं। सर्दियों में हीटिंग, ट्रकों की बढ़ी आवाजाही और निर्माण-धूल भी प्रदूषण में योगदान देती हैं।
2. दिल्ली-एनसीआर की वर्तमान स्थिति
- एक्यूआई लगातार ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ में-सर्दियों के महीनों अक्टूबर से जनवरी में दिल्ली-एनसीआर में एक्यूआई अक्सर 300-450 के बीच रहता है। कुछ इलाकों में यह 500 तक पहुँच जाता है।
- स्वास्थ्य पर बढ़ते खतरे-आँखों व त्वचा में जलन, गले, फेफड़ों और नाक में सूजन, अस्थमा के मरीजों में अटैक बढ़ना, दिल-दिमाग पर असर, खून में ऑक्सीजन की कमी, बच्चों और बुजुर्गों में जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार पीएम 2.5 का अधिक स्तर दीर्घकाल में फेफड़ों का कमजोर होना, कैंसर, हृदय रोगों और समय पूर्व मौत तक का कारण बन सकता है।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव-स्कूल बंद करने पड़ते हैं, उड़ानें देरी से उड़ती हैं, ट्रैफिक जाम और दृश्यता में गिरावट, दमा, एलर्जी, वायरल संक्रमण का बढ़ना, रोज़गार, निर्माण और व्यापार पर असर।
3. दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बड़े स्रोत
- पराली जलाना-विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान 25 से 40 प्रतिशत तक होता है।
- परिवहन 25 से 30 प्रतिशत-पुराने डीज़ल वाहन, भारी ट्रक, अनियमित ट्रैफिक और वाहनों की अत्यधिक संख्या प्रदूषण का मुख्य स्रोत हैं।
- निर्माण/धूल 15 से 20 प्रतिशत-सड़क धूल, निर्माण स्थल, कचरा जलाना और रिसाइकल यूनिट धूल को हवा में मिलाते रहते हैं।
- औद्योगिक उत्सर्जन 10 से 15 प्रतिशत-औद्योगिक धुआँ, कोयला/डीजल आधारित बॉयलर्स और छोटे उद्योग वायु को प्रदूषित करते हैं।
- कचरा जलाना-सर्दियों में नमी के चलते कचरा जलाने का धुआँ हवा में अधिक फैले बिना जमा हो जाता है।
4. सरकार और एजेंसियों के प्रमुख कदम
- ग्रेप यानी ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान-एक्यूआई के स्तर के अनुसार अलग-अलग चरणों में निर्माण रोकना, डीज़ल जेनरेटर बंद, ट्रकों की एंट्री पर प्रतिबंध, स्कूल बंद, गाड़ियों की संख्या सीमित जैसे कदम उठाए जाते हैं।
- सीएक्यूएम यानी कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट-क्षेत्रीय निगरानी, वैज्ञानिक अध्ययन, औद्योगिक उत्सर्जन नियंत्रण और नियमों के पालन की निगरानी करता है।
- बीएस-6 ईंधन और ई-वाहनों का विस्तार-वाहनों के धुएँ को कम करने के लिए सख्त ईंधन मानक लागू किए गए हैं।
- पराली प्रबंधन योजनाएँ-हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, एसएमएएम सब्सिडी, बायो-एंजाइम और डीकम्पोजर, पराली खरीद/ऊर्जा संयंत्र प्रस्ताव, इनका विस्तार अभी भी धीमा है।
5. बचाव के उपाय (व्यक्तिगत, सामुदायिक, नीतिगत)
- व्यक्तिगत स्तर पर, एन95 या एन99 मास्क पहनना, सुबह-शाम बाहर घूमने से बचना, घर में एयर-प्यूरिफायर का उपयोग, पौधे, मनी-प्लांट, स्नेक-प्लांट, आरिका पाम जैसे इनडोर पौधे, पानी अधिक पीना, एंटी-ऑक्सीडेंट युक्त आहार, दमा/एलर्जी वाले मरीज डॉक्टर की सलाह से इनहेलर या दवा साथ रखें, बच्चे और बुजुर्ग कम से कम बाहर जाएँ।
- सामुदायिक स्तर पर, कचरा न जलाएँ और दूसरों को भी रोकें, निर्माण-स्थलों को ढककर रखना, धूल नियंत्रण, सोसाइटी स्तर पर ग्रीन-बेल्ट बनाना।
- नीतिगत या दीर्घकालिक उपाय, पराली को ऊर्जा-संयंत्रों में उपयोग करने की व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन का विस्तार, ईवी पर इंसेंटिव, निर्माण-धूल पर सख्त नियंत्रण, औद्योगिक क्षेत्रों में रियल-टाइम मॉनिटरिंग, शहरी हरियाली (ग्रीन-कोरिडोर, सिटी-फॉरेस्ट), पूरे एनसीआर राज्यों का संयुक्त एक्शन-प्लान। सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर का प्रदूषण सिर्फ मौसम की वजह से नहीं, बल्कि मानवीय गतिविधियों, क्षेत्रीय कारकों और प्रशासनिक चुनौतियों का संयुक्त परिणाम है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी सर्दी आते ही स्मॉग और एक्यूआई में भारी गिरावट दिखाई देती है। यह समस्या हल तभी होगी जब सरकार, उद्योग, किसान, नागरिक सभी मिलकर इसे “साल भर चलने वाली लड़ाई” मानें। नियमों का पालन, तकनीकी उपाय, पराली का वैज्ञानिक प्रबंधन, सार्वजनिक परिवहन की मजबूती और जागरूक नागरिकता, यही वे रास्ते हैं जो दिल्ली-एनसीआर को सर्दी के प्रदूषण संकट से बाहर निकाल सकते हैं।