H-1B वीजा शुल्क बढ़ाने से भारत नहीं, अमेरिका को होगा ज्यादा नुकसान: रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय आईटी कंपनियां पहले से ही अमेरिका में 50-80 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरी दे रही हैं।;
अमेरिका द्वारा H-1B वीजा शुल्क को बढ़ाकर 1 लाख डॉलर करने के फैसले का असर भारत से ज्यादा खुद अमेरिका पर पड़ेगा। यह खुलासा थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने अपनी रिपोर्ट में किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय आईटी कंपनियां पहले से ही अमेरिका में 50-80 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरी दे रही हैं। इन कंपनियों ने अब तक लगभग 1 लाख अमेरिकी नागरिकों को रोजगार प्रदान किया है। ऐसे में वीजा शुल्क बढ़ाने से न तो नए रोजगार पैदा होंगे और न ही स्थानीय लोगों को सीधा फायदा होगा। उल्टा, भारत से जाने वाले कर्मचारियों की लागत स्थानीय भर्ती की तुलना में कहीं अधिक हो जाएगी।
क्या पड़ेगा असर?
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने बताया कि अमेरिका में पांच साल का अनुभव रखने वाला एक आईटी मैनेजर औसतन 1.20 से 1.50 लाख डॉलर सालाना कमाता है। वहीं, H-1B वीजा पर काम करने वाले कर्मचारी 40% कम और भारत में कार्यरत कर्मचारी लगभग 80% कम वेतन पर काम करते हैं।
इतना ऊंचा वीजा शुल्क कंपनियों को मजबूर करेगा कि वे आउटसोर्सिंग पर जोर दें और काम भारत से ही करवाएं। इससे H-1B वीजा आवेदनों की संख्या घटेगी, स्थानीय भर्ती पर असर पड़ेगा, अमेरिकी ग्राहकों के लिए परियोजना लागत बढ़ेगी और नवाचार की गति धीमी हो जाएगी।
भारत कैसे उठा सकता है फायदा?
श्रीवास्तव ने सुझाव दिया कि भारत को इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए एक ठोस रणनीति तैयार करनी चाहिए।
सॉफ्टवेयर, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी में क्षमता बढ़ाना
विदेश से लौटे भारतीय प्रतिभाओं का उपयोग करना
अमेरिका के संरक्षणवादी कदमों की कीमत पर भारत के डिजिटल स्वराज मिशन को मजबूत करना
विश्लेषकों का मानना है कि अगर भारत इस अवसर का सही उपयोग करता है तो वह वैश्विक आईटी बाजार में अपनी स्थिति और मजबूत बना सकता है।