Krishna Janmashtami 2025: आखिर क्यों रात के 12 बजे काटा जाता है खीरा, जानें कैसे होती है ये प्रक्रिया

Update: 2025-08-15 15:00 GMT

नई दिल्ली। जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर भक्तजन पूरे मन और श्रद्धा से इस दिव्य अवसर को मनाते हैं, जिसमें भगवान की बाल लीलाओं और उनके जन्म की पावन कथा का स्मरण किया जाता है। जन्माष्टमी पावन दिन की एक अहम परंपरा है खीरे से लड्डू गोपाल का जन्म जो भगवान के जन्म की कोख से जन्म लेने की घटना का प्रतीक है। जैसे माता के गर्भ से बच्चे का जन्म होता है और नाल छेदन कर उसे संसार में लाया जाता है, उसी प्रकार जन्माष्टमी की रात खीरे को काटकर लड्डू गोपाल का जन्म करवाया जाता है।

कैसे होती है ये प्रक्रिया

जन्माष्टमी के दिन सुबह-सुबह डंठल वाला ताजा खीरा लिया जाता है और उसमें भगवान लड्डू गोपाल को रखा जाता है। जैसे ही आधी रात के 12 बजे का समय होता है, उस खीरे को सिक्के की मदद से सावधानीपूर्वक काटा जाता है और उसमें से लड्डू गोपाल को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया को कई राज्यों में "नाल छेदन" के नाम से जाना जाता है।

रात 12 बजे खीरा क्यों काटते हैं?

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व ठीक 12:00 बजे रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथ और मान्यता के अनुसार, खीरे का संबंध गर्भाशय से होता है। जन्माष्टमी की पूजा में खीरे को माता देवकी के गर्भाशय का प्रतीक माना जाता है। जन्माष्टमी के दिन सुबह डंठल वाले खीरे को लाया जाता है और रात में खीरे को डंठल के साथ बीच से काटा जाता है। इसके बाद लड्डू गोपाल का जन्म होता है, जिसे नाभि छेदन अथवा नाल छेदने के प्रतीक के रूप में माना जाता है। खीरे को काटना बंधन से मुक्ति, अंधकार से प्रकाश और अधर्म पर धर्म की विजय का संकेत देता है।

कान्हा जी को क्यों चढ़ता है खीरा?

खीरा एक शीतल फल है, और श्रीकृष्ण को शीतलता पसंद थी। खीरा काटकर भगवान को चढ़ाने से यह माना जाता है कि भक्त अपनी अशुद्धियां त्याग रहे हैं और शुद्ध हृदय से भक्ति कर रहे हैं। जन्माष्टमी पर खीरे का प्रसाद ग्रहण करने से संतान सुख की प्राप्ति भी होती है। बता दें कि कृष्ण जन्म के पहले जन्माष्टमी के दिन खीरा नहीं खाना चाहिए।

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