NAVRATRI SPECIAL: भारत का सबसे चर्चित मंदिर जिसके 3 बार दर्शन करने से सांसारिक बंधनों से मिलती है मुक्ति, जानें क्या है कथा

Update: 2025-10-01 06:53 GMT

गुवाहाटी। देशभर में मां दुर्गा को समर्पित कई मंदिर हैं। असम की राजधानी गुवाहाटी में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित कामाख्या मंदिर, देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर तंत्र-मंत्र की साधना के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है और देवी शक्ति को समर्पित है। इस प्रमुख मंदिर का उल्लेख कालिका पुराण में मिलता है। इसे सबसे पुराना शक्तिपीठ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो साधक इस मंदिर के 3 बार दर्शन कर लेता है, उसे सांसारिक बंधन से छुटकारा मिलता है।

मंदिर की विशेषता

इस मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें देवी सती की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि उनकी योनि का पूजन होता है, जहाँ यह माना जाता है कि भगवान विष्णु के चक्र से सती के शरीर का हिस्सा गिरा था। यह मंदिर तांत्रिकों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है और अपने वार्षिक अंबुबाची मेले के लिए प्रसिद्ध है, जो प्रजनन क्षमता का उत्सव मनाता है.

पौराणिक कथा- पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव के अपमान के कारण यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था, तो क्रोधित शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगे। भगवान विष्णु ने सृष्टि को बचाने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। कहा जाता है कि सती की योनि (गर्भाशय और जननांग) नीलाचल पर्वत पर गिरी थी, जिसके कारण इस मंदिर को शक्ति का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है।

मूर्ति की अनुपस्थिति- इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है। इसके बजाय, एक गुफा के भीतर एक चट्टान है जो देवी सती के योनि के आकार की है, और प्राकृतिक रूप से बहने वाले जल से ढकी रहती है। इसी की पूजा की जाती है।

अंबुबाची मेला- हर साल आषाढ़ (जून) के महीने में, यहां तीन दिवसीय अंबुबाची मेला आयोजित होता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों देवी को मासिक धर्म होता है। इस दौरान मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, और भक्तों को प्रवेश की अनुमति नहीं होती।

तांत्रिक महत्व- कामाख्या मंदिर तंत्रवाद के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां काले जादू को दूर करने और उस पर नियंत्रण पाने के लिए विशेष पूजा की जाती है। यह पूजा मंदिर परिसर में रहने वाले साधु और अघोरी करते हैं।

वास्तुकला- मंदिर का पुनर्निर्माण 1565 में कोच वंश के राजा विश्वसिंह के पुत्र के शासनकाल में हुआ था। मंदिर की वास्तुकला नागर और सारसेनिक शैलियों का मिश्रण है, जिसे नीलाचल शैली के रूप में जाना जाता है।

क्या है मंदिर की मान्यता?

धार्मिक मान्यता है कि जो साधक जीवन में इस मंदिर के 3 बार दर्शन कर लेता है। उसे सांसारिक बंधन से मुक्ति मिल जाती है। इस मंदिर को तंत्र विद्या अधिक जाना जाता है।

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