Subhanshu Shukla: ISS से लौटने के बाद सीधे चलने में हो रही कठिनाई, इंस्टाग्राम के जरिए साझा किया अनुभव

इंसान हमेशा गुरुत्वाकर्षण के माहौल में जीता है;

By :  Aryan
Update: 2025-07-18 08:01 GMT

नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने ISS से लौटने पर अपने अनुभव को सोशल मीडिया पर शेयर किया है। जिसमें माइक्रोग्रैविटी यानी शून्य गुरुत्वाकर्षण और मानव शरीर के तालमेल के ऊपर जानकारी दी है।

माइक्रोग्रैविटी के साथ संतुलन बनाना

शुभांशु ने बताया कि अंतरिक्ष में रहना शरीर के लिए एक अनोखा अनुभव होता है, क्योंकि इंसान हमेशा गुरुत्वाकर्षण के माहौल में जीता है। अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी के समय में शरीर को उस अनुरूप में ढलने के लिए कई बदलाव किए जाते हैं। हमारा शरीर गुरुत्वाकर्षण के साथ बड़े होता है, शरीर को इसके अलावा कुछ नया अनुभव नहीं होता। लेकिन जैसे ही हम अंतरिक्ष में जाते हैं, तब शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं।

अंतरिक्ष में दिल की धड़कन धीमी हो जाती है

शुभांशु ने लिखा कि अंतरिक्ष में रहते हुए शरीर में तरल पदार्थ कम हो जाते हैं। दिल की धड़कन भी धीमी हो जाती है क्योंकि अंतरिक्ष खून को सिर तक पहुंचाने के लिए गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ मेहनत नहीं करनी होती है। इतना ही नहीं, संतुलन बनाए रखने वाली प्रणाली यानी वेस्टिबुलर सेंस को भी नए वातावरण में खुद को ढालना पड़ता है। लेकिन सबसे अच्छी बात है कि शरीर इन बदलावों को जल्दी ही ग्रहण कर लेता है, आप वहां भी सामान्य महसूस करने लगते हैं।

लेकिन चुनौती तब शुरू होती है जब आप मिशन पूरा करने के बाद वापस धरती पर लौटते हैं। तब आपको खुद को फिर से गुरुत्वाकर्षण के हिसाब से ढालना पड़ता है।

सीधा चलना भी कठिन हो जाता है। शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है, साथ ही प्रतिक्रिया देने की समय सीमा कम हो जाती है। हालांकि कुछ समय में शरीर फिर से पहले जैसा हो जाता है।

बदलावों को समझना बेहद खास होता 

उन्होंने यह भी कहा कि इन बदलावों को समझना बेहद खास है क्योंकि लंबे समय तक होने वाले अंतरिक्ष अभियानों के लिए वैज्ञानिक उचित समाधान की खोज कर सकें। अंत में लिखा है कि मैं स्प्लैशडाउन हो चुका हूं लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे मैं फिर से चलना सीख रहा हूं।


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