करणी माता की ‘औरण परिक्रमा’ क्यों की जाती है, जानें अलौकिक मां के चमत्कारी रहस्य को
आज चतुर्दशी के दिन मां की आराधना का विशेष महत्व है। करणी माता जी की औरण परिक्रमा जिसे करणी माता औरण यात्रा या देशनोक औरण परिक्रमा भी कहा जाता है। यह हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष में ही आयोजित होती है। खासतौर पर चौदस की दिन मां की विशेष पूजा की जाती है। बता दें कि यह मंदिर राजस्थान के बीकानेर- देशनोक में स्थित है। इसे चूहों वाला मंदिर भी कहते हैं।
चौदस का दिन मां दुर्गा है समर्पित
यह परिक्रमा कार्तिक शुक्ल पक्ष में, विशेषकर एकादशी से पूर्णिमा के बीच होती है। लेकिन चौदस का दिन मां दुर्गा को खासतौर पर समर्पित है, माता करणी मां दुर्गा का ही रूप हैं। इसलिए आज के दिन भक्तों का यहां जमावड़ा लगता है।
माता करणी ने औरण पर्वत पर तपस्या की थी
सभी भक्तजन लगभग 30–40 किलोमीटर की यह परिक्रमा ‘औरण पर्वत’ के चारों ओर करते हैं, जहां माता करणी ने तपस्या की थी। बता दें कि इस परिक्रमा में हजारों श्रद्धालु नंगे पैर भाग लेते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस परिक्रमा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और करणी माता की कृपा प्राप्त होती है।
करणी माता बीकानेर के शाही परिवारों की हैं कुलदेवी
करणी माता का जन्म 1387 ईस्वी में राजस्थान के सुवाप गांव में हुआ था। वह चारण जाति में जन्मी थीं और उनका बचपन का नाम रिद्धा बाई था। करणी माता को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है और उन्हें जोधपुर और बीकानेर के शाही परिवारों की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।