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विशेष पुनरीक्षण में आधे मतदाताओं को नहीं दिखाने होंगे दस्तावेज, चुनाव आयोग ने दी बड़ी राहत

चुनाव आयोग ने बुधवार को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर बड़ा फैसला किया है। आयोग ने कहा है कि इस प्रक्रिया के तहत देशभर के करीब आधे मतदाताओं को कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी। दरअसल, जिन मतदाताओं के नाम राज्यों की पिछली एसआइआर के बाद तैयार मतदाता सूची में शामिल हैं, उन्हें जन्मतिथि या जन्मस्थान साबित करने के लिए नए कागज नहीं देने होंगे।
चुनाव आयोग ने क्या कहा?
आयोग के अनुसार, अधिकांश राज्यों में मतदाता सूची का आखिरी पुनरीक्षण 2002 से 2004 के बीच हुआ था। इस अवधि को ही कट-ऑफ डेट माना जाएगा। उदाहरण के तौर पर, बिहार में 2003 की एसआइआर सूची आधार बनेगी। वहां के लगभग 5 करोड़ मतदाता (60%) पहले से दर्ज हैं, जिन्हें कोई नया दस्तावेज नहीं देना होगा। वहीं, करीब 3 करोड़ नए मतदाताओं (40%) से आवश्यक दस्तावेज मांगे गए।
दिल्ली की पिछली एसआइआर सूची 2008 की है, जबकि उत्तराखंड की 2006 की। ये सूचियां राज्य चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
किन्हें दस्तावेज दिखाने होंगे?
जो लोग नए मतदाता बनना चाहते हैं या किसी अन्य राज्य से स्थानांतरित होकर आए हैं, उन्हें शपथपत्र भरना होगा। नियम इस प्रकार हैं:
• 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे: खुद का जन्म प्रमाण पत्र देना होगा।
• 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे: माता-पिता के जन्म या नागरिकता संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।
• 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे: यह साबित करना होगा कि माता-पिता में कम से कम एक भारतीय नागरिक है और दूसरा गैर-कानूनी प्रवासी नहीं है।
15 करोड़ नाम कट सकते हैं
देश में करीब 100 करोड़ मतदाता हैं। आकलन है कि राष्ट्रीय स्तर पर एसआइआर होने से लगभग 15 करोड़ नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं। इसमें मृतक व्यक्तियों के नाम, दोहरे पंजीकरण वाले नाम और अपात्र मतदाता शामिल होंगे। आयोग जल्द ही विशेष पुनरीक्षण की तारीख घोषित करेगा।
ईवीएम पर रंगीन फोटो और समान नाम का आकार
मतदाता सूची को स्वच्छ बनाने के साथ-साथ चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को भी और पारदर्शी बनाने का निर्णय लिया है।
• अब उम्मीदवारों का फोटो रंगीन होगा।
• नाम पूरे देश में एक समान 30 प्वाइंट साइज और बोल्ड अक्षरों में लिखा जाएगा।
• अब तक उम्मीदवारों की फोटो ब्लैक एंड व्हाइट होती थी, जिससे बुजुर्ग मतदाताओं को पहचानने में दिक्कत आती थी।
यह नई व्यवस्था बिहार विधानसभा चुनाव से लागू की जाएगी।