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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- स्वदेशी और आत्मनिर्भरता जरूरी, अंतराष्ट्रीय व्यापार में दबाव ठीक नहीं

Shilpi Narayan
27 Aug 2025 7:07 PM IST
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- स्वदेशी और आत्मनिर्भरता जरूरी, अंतराष्ट्रीय व्यापार में दबाव ठीक नहीं
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मोहन भागवत ने कहा कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति आज दिखाई देती है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाईं।

नई दिल्ली। आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि स्वदेशी और आत्मनिर्भरता जरूरी है। अंतराष्ट्रीय व्यापार में दबाव ठीक नहीं है। व्यापार सलीके से होना चाहिए। किसी के उकसाने में न आए। देशहित में स्वार्थ से उठना होगा। मोहन भागवत ने कहा है कि जहां दुख पैदा होता है वहां धर्म नहीं। दूसरे धर्म की बुराई करना धर्म नहीं है।

उन्होंने कहा कि संघ जैसा विरोध किसी का नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति आज दिखाई देती है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाईं। समाधान केवल धर्म-संतुलन और भारतीय दृष्टि से संभव है। मोहन भागवत संघ के 100 साल पूरे होने पर दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित संवाद कार्यक्रम को दूसरे दिन संबोधित कर रहे थे।

संघ में कोई इंसेंटिव नहीं है

उन्होंने कहा कि संघ में लोगों को कुछ नहीं मिलता बल्कि जो है वो भी चला जाता है। स्वयंसेवक अपना काम इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम में आनंद आता है। उन्हें इस बात से प्रेरणा मिलती है कि उनका काम विश्व कल्याण के लिए समर्पित है। अपने संबोधन के दौरान भागवत ने कहा कि उन्होंने (दादाराव) एक पंक्ति में आरएसएस क्या है। उन्होंने इसकी व्याख्या की है। उन्होंने कहा कि संघ की सत्य और सही जानकारी देना ही इस व्याख्यान माला उद्देश्य है। भागवत ने कहा कि संघ में कोई इंसेंटिव नहीं है।

सत्य और प्रेम ही हिंदुत्व

उन्होंने कहा कि सत्य और प्रेम ही हिंदुत्व है। दिखते अलग-अलग हैं, लेकिन सब एक हैं। दुनिया अपनेपन से चलती है, सौदे से नहीं। मानव संबंध अनुबंध और लेन-देन पर नहीं, बल्कि अपनेपन पर आधारित होने चाहिए। सरसंघचालक ने कहा कि ध्येय के प्रति समर्पित होना संघ कार्य का आधार है। उपभोग के पीछे भागने से दुनिया नष्ट होने की कगार पर आ जाती है जैसा कि आजकल सब तरफ हो रहा है। उन्होंने कहा कि अनुकूलता मिली है तो सुविधभोगी नहीं होना है, आराम नहीं करना। सतत चलते रहना है। मैत्री, उपेक्षा, आनंद, करुणा के आधार पर सतत चलते रहना है।

100 वर्षों में संघ की स्थिति बदली

भागवत ने कहा कि बीते 100 वर्षों में संघ की स्थिति बदली है। आज अनुकूलता का वातावरण है। भारत और संघ की साख इतनी है कि समाज सुनता है। आज जितना बुरा दिखता है, उससे कहीं 40 गुना अधिक अच्छा समाज में है। मीडिया रिपोर्ट के आधार पर भारत का मूल्यांकन अधूरा है। दुनिया के अलग-अलग देशों में अपने-अपने प्रवृति और प्रकृति के आधार पर वो अपने अपने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बनाए। नागपुर में कुछ विदेश से अभी लोग आए थे उन्होंने कहा हमारा भी एक आरएसएस होना चाहिए।

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