तकनीक, बाजार और राजनीति के दबावों के बीच सत्य की खोज में संघर्षरत है पत्रकारिता
-नई पीढ़ी के सामने हैं ईमानदार और जिम्मेदार पत्रकारिता की बड़ी उम्मीदे;
डॉ. चेतन आनंद
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि यह समाज, सत्ता और जनता के बीच संवाद का सबसे सशक्त माध्यम है। लेकिन आज पत्रकारिता एक संक्रमणकाल से गुजर रही है। जहाँ एक ओर तकनीकी प्रगति और डिजिटल मीडिया ने सूचना के प्रवाह को तेज किया है, वहीं दूसरी ओर पूँजी, राजनीति और फेक न्यूज़ ने उसकी विश्वसनीयता को गहरा आघात पहुंचाया है। ऐसे समय में सवाल यह है कि पत्रकारिता की दशा और दिशा क्या है, और इसमें नौजवानों का भविष्य कितना सुरक्षित है?
पत्रकारिता की वर्तमान दशा
आज पत्रकारिता ने अपने रूप और माध्यम दोनों बदल लिए हैं। अब यह केवल प्रिंट या टीवी तक सीमित नहीं, बल्कि डिजिटल और सोशल मीडिया तक फैल चुकी है। लेकिन खबरों की इस बाढ़ में “सत्य” अक्सर शोर में दब जाता है। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार का यह कथन बिल्कुल सटीक प्रतीत होता है-“पत्रकारिता अब सत्ता से सवाल पूछने के बजाय, सत्ता के लिए तालियां बजाने लगी है।” वास्तविकता यह है कि अब खबरों की दिशा पूंजी, विज्ञापन और राजनीतिक विचारधाराओं से प्रभावित होती जा रही है।
पत्रकारिता के सामने प्रमुख चुनौतियां
1. आर्थिक और संस्थागत दबाव-मीडिया हाउस अब कॉर्पोरेट समूहों के नियंत्रण में हैं। समाचारों की प्राथमिकता टीआरपी और विज्ञापन पर निर्भर करती है। स्वतंत्र पत्रकारों के लिए आर्थिक स्थिरता और निष्पक्षता बनाए रखना कठिन होता जा रहा है।
2. राजनीतिक हस्तक्षेप और वैचारिक झुकाव-पत्रकारिता का सबसे बड़ा संकट उसकी निष्पक्षता पर मंडरा रहा है। आज कई मीडिया संस्थान किसी न किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़कर काम कर रहे हैं। इससे जनता का विश्वास डगमगाने लगा है।
3. फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया का खतरा-डिजिटल क्रांति ने सूचनाओं की गति तो बढ़ाई है, पर सत्यापन की प्रक्रिया कमजोर हुई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फैली अफवाहें समाज में अविश्वास का वातावरण बना रही हैं।
4. नैतिकता और जिम्मेदारी का संकट-खबरों को सनसनीखेज़ बनाने और ‘पहले दिखाने’ की होड़ में पत्रकारिता की आत्मा कमजोर हो रही है। कई बार पत्रकारिता जनहित के बजाय व्यावसायिक हित का साधन बन जाती है। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा था- “पत्रकारिता का पहला धर्म है डर और लालच से मुक्त होकर सच कहना।” आज यही सबसे बड़ी चुनौती है।
5. सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा-कई पत्रकार सच्चाई उजागर करने की कीमत अपनी जान देकर चुका रहे हैं। धमकियां, हमले और कानूनी उत्पीड़न पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा रहे हैं।
6. तकनीकी बदलाव और प्रशिक्षण की कमी-एआई डेटा जर्नलिज़्म और डिजिटल माध्यमों के युग में जो पत्रकार तकनीक से अपडेट नहीं हैं, वे पिछड़ रहे हैं। पत्रकारिता संस्थानों में भी व्यावहारिक प्रशिक्षण की कमी महसूस की जा रही है।
7. दर्शकों की मानसिकता में बदलाव-अब दर्शक गंभीर विषयों से अधिक “मनोरंजन” पसंद करते हैं। टीवी बहसें कई बार ज्ञान से अधिक तमाशा बन जाती हैं, जिससे पत्रकारिता की गंभीरता कमजोर होती जा रही है।
संभावनाएं और नई दिशा
इन चुनौतियों के बावजूद पत्रकारिता के सामने नई संभावनाएं भी खुल रही हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म, स्वतंत्र मीडिया, यूट्यूब चैनल, पॉडकास्ट और नागरिक पत्रकारिता युवाओं को अपनी बात कहने का नया माध्यम दे रहे हैं। नए पत्रकार डेटा-आधारित, शोधपरक और मानवीय सरोकारों से जुड़ी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। पर्यावरण, शिक्षा, महिला अधिकार, साइबर सुरक्षा और ग्रामीण मुद्दों पर काम करने वाले युवा पत्रकार पत्रकारिता को फिर से जनसरोकारों की दिशा में मोड़ रहे हैं। वरिष्ठ संपादक पुण्य प्रसून वाजपेयी कहते हैं- पत्रकारिता तभी जीवित रहेगी जब वह सत्ता के नहीं, समाज के प्रति जवाबदेह रहेगी। यह विचार नई पीढ़ी के लिए दिशा-सूचक है।
नौजवानों के लिए मार्गदर्शन
1.पत्रकारिता को पेशा नहीं, सेवा और जिम्मेदारी मानें।
2.खबर से पहले सत्यापन को प्राथमिकता दें।
3.तकनीकी दक्षता के साथ नैतिकता और संवेदनशीलता बनाए रखें।
4.किसी भी विषय को जनहित की दृष्टि से देखें।
5.सत्ता से नहीं, समाज से संवाद करें।
पत्रकारिता का वर्तमान समय चुनौतीपूर्ण अवश्य है, लेकिन संभावनाओं से भरा हुआ भी है। यदि युवा पत्रकार ईमानदारी, संवेदनशीलता और निष्पक्षता को अपना ध्येय बनाएं तो आने वाले समय में पत्रकारिता फिर से अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकती है। महात्मा गांधी ने कहा था- पत्रकारिता का उद्देश्य जनता की सेवा है, न कि सत्ता की स्तुति। यदि यही भाव फिर से पत्रकारिता का मार्गदर्शक बने, तो यह न केवल लोकतंत्र को मज़बूत करेगी, बल्कि नौजवानों के लिए एक उज्ज्वल और सार्थक भविष्य का द्वार भी खोलेगी।