12 साल से वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हरीश राणा के लिए पिता ने मांगी इच्छा-मृत्यु, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम आदेश

हरीश राणा पिछले 12 वर्षों से पूरी तरह बिस्तर पर हैं और 100 प्रतिशत विकलांगता का सामना कर रहे हैं।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-11-26 19:30 GMT

भारत में इच्छा-मृत्यु को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए नोएडा के जिला अस्पताल को निर्देश दिया है कि वह 31 वर्षीय हरीश राणा के मामले में ‘पैसिव यूथेनेसिया’ की संभावना की जांच के लिए एक प्राथमिक मेडिकल बोर्ड गठित करे। हरीश राणा पिछले 12 वर्षों से पूरी तरह बिस्तर पर हैं और 100 प्रतिशत विकलांगता का सामना कर रहे हैं। कोर्ट ने जिला अस्पताल को दो सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है, जिसके बाद आगे की सुनवाई और निर्णय लिए जाएंगे।

हरीश राणा का दर्दनाक सफर

पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र रहे हरीश राणा वर्ष 2013 में एक हादसे के शिकार हो गए थे, जब वह अपने पेइंग गेस्ट हॉस्टल की चौथी मंजिल से नीचे गिर पड़े। इस दुर्घटना में उन्हें सिर में गंभीर चोटें आईं, जिसके बाद से वह वेंटिलेटर पर निर्भर हैं। बीते 12 वर्षों में उनकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई है और वे पूरी तरह बिस्तर-बंध अवस्था में जीवन-रक्षक प्रणालियों पर जीवित हैं।

उनके पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि उनका बेटा अब किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने में सक्षम नहीं है और उसके जीवन में सुधार की कोई संभावना नहीं बची है। उन्होंने कहा कि वे हर दिन बेटे को असहनीय पीड़ा में देखते हैं, जो परिवार के लिए मानसिक और भावनात्मक रूप से बेहद कठिन है।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और निर्देश

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने पिता की याचिका सुनते हुए अस्पताल को निर्देश दिया कि वह यह जांचे कि क्या हरीश राणा को प्रदान की जा रही जीवन-रक्षक चिकित्सा को रोका जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट मिलने के बाद ही पैसिव यूथेनेसिया पर अंतिम निर्णय दिया जाएगा।

पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “लड़के की हालत बहुत दयनीय है। हमें यह जानने की जरूरत है कि क्या इस स्थिति में जीवन-रक्षक उपचार जारी रखना उचित है या नहीं।”

पहले भी दरवाजा खटखटा चुका है परिवार

यह पहली बार नहीं है जब हरीश के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट से इस तरह की मांग की है। बीते साल 8 नवंबर 2024 को भी कोर्ट ने उनकी याचिका पर विचार किया था और केंद्र सरकार व उत्तरप्रदेश सरकार को घर पर देखभाल और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। हालांकि, पिता की ओर से पैरवी कर रहीं वकील रश्मि नंदकुमार ने बताया कि सभी प्रयासों के बावजूद हरीश की हालत में कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा।

क्या है पैसिव यूथेनेसिया?

पैसिव यूथेनेसिया वह कानूनी प्रक्रिया है जिसके तहत मरीज के जीवन को बनाए रखने वाली चिकित्सा सुविधाओं—जैसे वेंटिलेटर, फीडिंग ट्यूब या अन्य मशीनरी—को धीरे-धीरे हटाया या बंद कर दिया जाता है, ताकि मरीज बिना अतिरिक्त पीड़ा झेले स्वाभाविक रूप से मृत्यु की ओर बढ़ सके। भारत में इसे सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों और कानूनी प्रक्रियाओं के तहत वैध माना है।

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