पूर्व सीजेआई बीआर गवई का बड़ा बयान: रिटायरमेंट के तुरंत बाद बोले – नेताओं या सरकार का कभी दबाव नहीं झेला
एक इंटरव्यू में पूर्व सीजेआई गवई ने कहा कि उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी राजनीतिक नेताओं, सरकार या किसी एग्जीक्यूटिव संस्था से दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम अपारदर्शी नहीं है और जो आरोप लगाए जाते हैं वे वास्तविक नहीं हैं।;
भारत के पूर्व चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने रिटायरमेंट के तुरंत बाद एक बड़ा बयान देते हुए देश की न्यायपालिका और उसकी स्वतंत्रता को लेकर उठाए जा रहे सवालों पर सीधा जवाब दिया है। न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में पूर्व सीजेआई गवई ने कहा कि उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी राजनीतिक नेताओं, सरकार या किसी एग्जीक्यूटिव संस्था से दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम अपारदर्शी नहीं है और जो आरोप लगाए जाते हैं वे वास्तविक नहीं हैं।
क्या नेताओं या सरकार ने कभी दबाव डाला?
जब इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि क्या कभी उन्हें सरकार या राजनीतिक नेतृत्व की ओर से दबाव झेलना पड़ा है, तो उन्होंने बिना किसी झिझक के कहा—"नहीं, सच में नहीं।" उन्होंने कहा कि भारत का संविधान लेजिस्लेचर, एग्जीक्यूटिव और ज्यूडिशियरी के बीच बेहद स्पष्ट शक्तियों का बंटवारा करता है और इसी वजह से किसी तरह का बाहरी हस्तक्षेप या दबाव संभव ही नहीं है। उनके इस बयान को उन आरोपों का जवाब माना जा रहा है, जिनमें कहा गया था कि न्यायपालिका सरकार के प्रभाव में काम करती है।
कॉलेजियम सिस्टम पर सफाई
पूर्व सीजेआई ने कॉलेजियम सिस्टम को लेकर उठते सवालों को भी खारिज किया। उन्होंने कहा कि यह सिस्टम पारदर्शी है और इसे लेकर जो दावे किए जाते हैं कि यह अपारदर्शी है, वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई के लिए निश्चित कार्यकाल जैसी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था संतुलित और प्रभावी है।
ज्यूडिशियल एक्टिविज़्म पर बड़ी टिप्पणी
पूर्व सीजेआई बीआर गवई ने न्यायपालिका की सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) को ‘ज्यूडिशियल टेररिज्म’ में नहीं बदलना चाहिए। उनका कहना था कि अदालतें कमजोर वर्गों के हक में हस्तक्षेप जरूर करें, लेकिन यह हस्तक्षेप संविधान की सीमाओं के भीतर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय को उन लोगों के लिए अवसर उपलब्ध कराना चाहिए जो आर्थिक या सामाजिक कारणों से न्याय प्राप्त नहीं कर सकते, परंतु न्यायिक शक्तियों का अतिरेक उचित नहीं है।
बुलडोजर एक्शन पर भी प्रतिक्रिया
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी जिक्र किया जिसमें 'बुलडोजर जस्टिस'—यानी अपराध के आरोपियों के घर प्रशासन द्वारा बिना उचित प्रक्रिया के गिराए जाने—को असंवैधानिक बताया गया था। गवई ने इसे एग्जीक्यूटिव के अत्यधिक हस्तक्षेप और कानून के दुरुपयोग का उदाहरण बताया।