लाखों में बिकते हैं लड़ाकू मुर्गे, हार-जीत से मालिक कमाते हैं मोटी रकम

तमाम विवादों के बीच लड़ाकू मुर्गों की एक ऐसी दुनिया भी है, जहां एक-एक मुर्गे की कीमत लाखों रुपये तक पहुंच जाती है और जीत-हार से उनके मालिक झोला भरकर कमाई करते हैं।;

Update: 2025-12-31 18:00 GMT

मकर संक्रांति के आसपास देश के कई हिस्सों, खासकर आंध्र प्रदेश में मुर्गों की लड़ाई को लेकर चर्चाएं तेज हो जाती हैं। इस दौरान रोकथाम और कार्रवाई की खबरें भी सामने आती हैं। लेकिन इन तमाम विवादों के बीच लड़ाकू मुर्गों की एक ऐसी दुनिया भी है, जहां एक-एक मुर्गे की कीमत लाखों रुपये तक पहुंच जाती है और जीत-हार से उनके मालिक झोला भरकर कमाई करते हैं।

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के धौरेरामाफी गांव में रहने वाले खान साहब की पहचान उनके खास लड़ाकू मुर्गों से है। मूल रूप से मुरादाबाद के रहने वाले खान साहब कई वर्षों से फाइटिंग मुर्गों को तैयार करने का काम कर रहे हैं। उनका यह शौक समय के साथ आज रोज़गार बन चुका है। उनके पास पाले गए कुछ मुर्गों की कीमत सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं। खान साहब के अनुसार, ये मुर्गे सिर्फ लड़ते नहीं, बल्कि जीत के साथ मोटी रकम भी कमाते हैं।

शौक से पहचान तक का सफर

खान साहब बताते हैं कि बचपन से ही उन्हें मुर्गे पालने का शौक था। गांव के माहौल में यह आम बात मानी जाती थी। जब उन्हें पता चला कि कई राज्यों में मुर्गों की कुश्ती आयोजित होती है और इसमें बड़ी रकम की बाजी लगती है, तो उन्होंने इसे गंभीरता से लेना शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने कुछ ही मुर्गे पाले और उन्हें खास तरीके से तैयार किया। धीरे-धीरे उनका नाम इस शौक से जुड़ता चला गया। आज उनके दो मशहूर मुर्गे ‘राजा’ और ‘किंग’ कई आयोजनों में अपनी जीत के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा कुछ युवा मुर्गे भी हैं, जिन्हें भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है।

3.50 लाख रुपये तक पहुंचती है कीमत

खान साहब का दावा है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड में भी कई बार मुर्गों की कुश्ती में हिस्सा लिया है। शुरुआत में पहली जीत दस हजार रुपये की बाजी से मिली थी, लेकिन अनुभव बढ़ने के साथ अब एक-एक फाइट में दो से ढाई लाख रुपये तक की बाजी लग जाती है। बड़े आयोजनों में राजा और किंग जैसे मुर्गों की खास मांग रहती है। ऐसे लड़ाकू मुर्गों की बोली 3.50 लाख रुपये तक लग चुकी है। खान साहब कहते हैं कि वे इन मुर्गों को अपने बच्चों की तरह पालते हैं।

डाइट और ट्रेनिंग पर खास फोकस

लड़ाकू मुर्गों की देखभाल में उनकी डाइट सबसे अहम मानी जाती है। खान साहब रोजाना उन्हें मूंगफली, काजू, बादाम और उच्च गुणवत्ता का दाना देते हैं। कभी-कभी फलों का जूस भी पिलाया जाता है। राजा और किंग को दूध भी दिया जाता है। इसके अलावा ताकत बनाए रखने के लिए रोजाना करीब 50-50 ग्राम बकरे का मांस खिलाया जाता है।

ट्रेनिंग के तहत सुबह-शाम मुर्गों को खुले मैदान में एक-एक घंटे तक छोड़ा जाता है। पैरों में हल्की रस्सी बांधी जाती है ताकि वे दूर न भागें। इस दौरान उछल-कूद से उनकी फुर्ती और पैरों की मजबूती बढ़ती है।

कानूनी पेंच और विवाद

मुर्गों की खूनी लड़ाई को लेकर देशभर में विवाद रहा है। तटीय इलाकों में कई जगह मुर्गों के पैरों में धारदार ब्लेड बांधकर लड़ाई कराई जाती है, जिसे पशु प्रेमी अमानवीय मानते हैं। भारत में इस तरह की खूनी लड़ाई पर कानूनी रोक है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी हालत में मुर्गों के पैरों में चाकू या ब्लेड नहीं बांधा जा सकता और जुए की अनुमति नहीं है।

इसके बावजूद यह खेल चोरी-छिपे कई जगह जारी है। जानकारों का कहना है कि यह परंपरा, पैसे और रोमांच के मेल से चलती आ रही है, लेकिन इसके कानूनी और नैतिक पहलुओं पर बहस अभी खत्म नहीं हुई है।

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