अगर आप भी लेते हैं अधिक दवाएं तो ध्यान दें...एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ा! जानें विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस तब होता है जब बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्मजीव किसी दवा के विरोध में प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं।;
नई दिल्ली। दुनिया एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की ओर जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में रिपोर्ट जारी की है। उसके मुताबिक 2016 से 2023 के बीच 100 से अधिक देशों में एंटीबायोटिक दवाओं का असर कमी देखी जा रही है। संक्रमणों पर पहले असरदार रहने वाली कई दवाएं अब बेअसर हो रही हैं, जो कि चिंता की बात है। मरीज इलाज होने के बावजूद ठीक नहीं हो पा रहे हैं।
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस किसे कहते हैं
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस तब होता है जब बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्मजीव किसी दवा के विरोध में प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। मतलब अब वह दवा उन रोगों पर असर नहीं करती है। यह स्थिति तब पैदा होती है जब एंटीबायोटिक का अधिक या गलत इस्तेमाल किया जाता है। इससे बैक्टीरिया में बदलाव होता है और वे मजबूत बनते जाते हैं। उसके बाद साधारण संक्रमणों के इलाज में भी मुश्किल आ जाती है।
दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता घट रही है
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के अस्पतालों में ऐसे संक्रमणों की संख्या तेजी तेजी से बढ़ रही है जो कि एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक नहीं हो रहे हैं। भारत सहित एशियाई देशों में यह समस्या और भी गंभीर है क्योंकि यहां बिना डॉक्टर की सलाह दवाओं का करना उपयोग आम बात है। अब हालात ऐसे हैं कि कई बार सर्जरी से पहले दिए जाने वाले सामान्य एंटीबायोटिक्स भी असर नहीं करते हैं। मरीजों को इलाज में हफ्तों लग जाते हैं और खर्च भी कई गुना बढ़ जाता है।
रेजिस्टेंस बढ़ने की तीन मूल कारण
दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल करना- लोग हल्के संक्रमण सर्दी-खांसी में भी खुद से एंटीबायोटिक लेना शुरू कर देते हैं।
डॉक्टरों का गलत परामर्श देना- कई बार जरूरत न होने पर भी दवाएं लिख दी जाती हैं।
पशुपालन और कृषि में उपयोग- जब किसान या पशुपालक जानवरों को जल्दी बड़ा के लिए एंटीबायोटिक दवाइयां देते हैं, तो यह जानवरों में बैक्टीरिया को भी प्रभावित करता है। समय के साथ, ये बैक्टीरिया और मजबूत हो जाते हैं और दवाइयों के खिलाफ रोक नहीं पाते, यानी वे प्रतिरोधी बन जाते हैं।
नए एंटीबायोटिक बहुत कम बन रहे
जानकारी के मुताबिक, अब कई सामान्य बीमारियों के संक्रमण में पुरानी दवाएं असर नहीं कर रही हैं, जैसे मूत्र संक्रमण, निमोनिया और घाव इत्यादि। डॉक्टरों के सामने अब चुनौती यह है कि नए एंटीबायोटिक बहुत कम बन रहे हैं, जबकि पुराने काम करना बंद कर रहे हैं। अगर ऐसा चलता रहा तो आने वाले सालों में सर्जरी या डिलीवरी भी जोखिमभरी हो जाएगी।
इसके समाधान पर दें ध्यान
बिना डॉक्टर की सलाह के दवाएं न लें।
इलाज अधूरा नहीं छोड़े, क्योंकि ऐसा करने से बैक्टीरिया और मजबूत हो जाते हैं।