भारत में गर्भवती महिलाओं के लिए छह दिन और बढ़ी खतरनाक गर्मी: अध्ययन
यह अध्ययन अमेरिका स्थित स्वतंत्र वैज्ञानिक संगठन क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा किया गया, जिसमें 2020 से 2024 के बीच की अवधि का विश्लेषण किया गया।;
एक ताजा वैश्विक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि भारत में गर्भवती महिलाओं को हर साल औसतन छह अतिरिक्त दिन अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। यह अध्ययन अमेरिका स्थित स्वतंत्र वैज्ञानिक संगठन क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा किया गया, जिसमें 2020 से 2024 के बीच की अवधि का विश्लेषण किया गया।
अध्ययन में दुनियाभर के 247 देशों और क्षेत्रों के रोजाना तापमान को जांचा गया, ताकि यह समझा जा सके कि कितने दिन गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक गर्मी के माने जा सकते हैं। इन दिनों को "प्रेग्नेंसी हीट-रिस्क डेज़" कहा गया है — ऐसे दिन जब अत्यधिक गर्मी के कारण समय से पहले प्रसव, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मृत जन्म और मातृ जटिलताओं जैसी स्थितियों का खतरा बढ़ जाता है।
भारत में, इस पांच वर्षीय अवधि के दौरान कुल 19 प्रेग्नेंसी हीट-रिस्क डेज़ में से छह दिन जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़े। अध्ययन में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन ने इन अतिरिक्त दिनों के लिए लगभग एक-तिहाई जिम्मेदारी निभाई।
राज्यवार आंकड़ों के अनुसार, सिक्किम में सबसे अधिक 32 दिन दर्ज किए गए, जो सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े थे। इसके बाद गोवा में 24 और केरल में 18 अतिरिक्त दिन दर्ज किए गए। शहरों में, पनाजी ने औसतन हर साल 39 ऐसे दिन झेले, जबकि तिरुवनंतपुरम में 36, मुंबई में 26, और चेन्नई, बेंगलुरु और पुणे में सात दिन दर्ज किए गए।
यह अध्ययन बताता है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण गर्भवती महिलाओं की सेहत पर खतरा बढ़ रहा है, खासकर उन इलाकों में जहां स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ही सीमित हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर जीवाश्म ईंधनों का जलना नहीं रोका गया और जलवायु संकट से निपटने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
महिलाओं के स्वास्थ्य विशेषज्ञ और जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे डॉ. ब्रूस बेक्कर ने कहा, "अत्यधिक गर्मी अब गर्भवती महिलाओं के लिए एक बड़ा वैश्विक खतरा बन चुकी है। यह समस्या उन क्षेत्रों में ज्यादा गंभीर है जहां स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही कम हैं।"
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि केवल एक दिन की भी तीव्र गर्मी गर्भावस्था में गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकती है। इसलिए, जलवायु संकट से निपटना न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए, बल्कि लाखों माताओं और नवजात शिशुओं के जीवन की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।