कवि सम्मेलन : ध्यान से देखो तो लगता है कुँअर बेचैन हम हैं

महाकवि डॉ. कुँअर बेचैन जयंती पर कविता संगोष्ठी आयोजित;

By :  Aryan
Update: 2025-07-03 10:12 GMT

गाजियाबाद। शालीमार गार्डन स्थित ट्रू मीडिया स्टूडियो में देवप्रभा प्रकाशन की ओर से महाकवि डॉ. कुंअर बेचैन जयंती पर आयोजित कविता संगोष्ठी में डेढ़ दर्जन से अधिक अतिथि कवियों ने डॉ. कुंअर बेचैन के संस्मरण साझा किये और अपनी कविताओं से शाम को सुहानी कर दी। गजरौला से पधारीं सुप्रसिद्ध महाकवयित्री डॉ. मधु चतुर्वेदी ने कविता संगोष्ठी की अध्यक्षता की। मशहूर शायर कृष्ण बिहारी नूर के शागिर्द अरविन्द असर मुख्य अतिथि तो मशहूर कवि अनिल मीत, बीएल बत्रा अमित्र और वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश प्रजापति विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शामिल हुए। सभी रचनाकारों को डॉ. कुंअर बेचैन के चित्र से सजा स्मृति चिह्न, मोतियों की माला और अंगवस्त्र भेंट देकर सम्मानित किया गया।

मुझको हर वक्त लगी रहती है तेरी चिन्ता, एक तू ही तो मेरे पास है खोने लायक

डॉ. मधु चतुर्वेदी ने अपने काव्य पाठ में दोहे, मुक्तक, गजलें और गीत प्रस्तुत किया। उनकी यह पंक्तियां विशेष रूप से सराही गईं-‘उम्रभर हमने ऐसे कसाले जिये, तुम निगलते रहे पर उजाले दिये, प्यास में अश्रुओं का रसायन मिला, तृप्ति के घट तुम्हारे हवाले किये।’ शायर अरविन्द असर ने कहा-‘मुझको अश्कों के समुन्दर से भिगोने लायक, कोई कांधा तो मिले फूट के रोने लायक, मुझको हर वक्त लगी रहती है तेरी चिन्ता, एक तू ही तो मेरे पास है खोने लायक।’ कविवर अनिल मीत ने पढ़ा-‘चुपके-चुपके सब कुछ सहना ठीक नहीं, मन ही मन में कुढ़ते रहना ठीक नहीं, दुनिया को समझा तो हमने यह जाना, सीधी-सच्ची बातें कहना ठीक नहीं।’

कलम जो अपने हाथों में हैं संभाले, दुनिया को मिल रहे हैं साहित्य के उजाले

प्रसिद्ध डॉ. मनोज कामदेव का यह चर्चित दोहा खूब पसंद किया गया-‘सूरज ने पाती लिखी, देख रात का रूप, खिड़की खुलते ही गिरी एक लिफाफा धूप।’ कवि अजीत श्रीवास्तव का कहना था-‘उनको आते देख हम घबरा गये, थम गई धड़कन कदम थर्रा गये, चाहता था दूर जिनसे रहूं, पास मेरे वो कहां से आ गये।’ शैलजा सक्सेना शैली ने डॉ. कुंअर बेचैन का कालजयी गीत ‘-नदी बोली समुन्दर से मैं तेरे पास आई हूं,’ सुनाया, साथ ही अपनी कविताओं से वातावरण को नई रौशनी दी। कवि जगदीश मीणा ने बचपन पर आधारित मार्मिक गीत सुनाकर सभी को भावुक कर दिया-‘मुझे याद आता है बचपन का सावन, मुसीबत की काली घटाओं की आवन।’ डॉ. सुरुचि सैनी ने सुनाया-‘कोयल कुहू कुहू से हर ड्योढ़ी गुंजाई है, मइया तेरे आंगन में फिर से बिटिया आई है।’ सुविख्यात कवयित्री शोभा सचान ने अपनी बात कुछ यूं कही-‘कविवर कलम जो अपने हाथों में हैं संभाले, दुनिया को मिल रहे हैं साहित्य के उजाले।

तुझपे पड़ने लगे हर किसी की नजर, अपने किरदार को यूं सजा ले जरा

कवयित्री ज्योति राठौर ने पढ़ा-‘प्यार कर जिन्दगी मुस्कुरा ले जरा, गीत इकरार के गुनगुना ले जरा, तुझपे पड़ने लगे हर किसी की नजर, अपने किरदार को यूं सजा ले जरा।’ कविता संगोष्ठी के संयोजक डॉ. चेतन आनंद ने डॉ. कुंअर बेचैन को समर्पित गीत पढ़ा। उनका कहना था-‘कौन कहता है हमें वे छोड़कर अब जा चुके हैं, ध्यान से देखो तो लगता है कुंअर बेचैन हम हैं।’ कविता संगोष्ठी में प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. तूलिका सेठ, डॉ. नीरजा चतुर्वेदी, सीमा सागर शर्मा, ओम प्रकाश प्रजापति आदि ने भी काव्य पाठ कर खूब समां बांधा। कुशल संचालन डॉ. चेतन आनंद ने किया। डॉ. कुंअर बेचैन की कविताओं के वाचन से कविता संगोष्ठी का समापन किया गया।

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