मोक्ष के लिए प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट! जहां माता पार्वती के इस श्राप के चलते 24 घंटे जलती रहती हैं चिताएं, जानें क्या है कहानी

Update: 2025-08-20 02:30 GMT

वाराणसी। वाराणसी का अस्सी घाट, गंगा आरती और छोटी-छोटी गलियों में बसी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। शिव की नगरी काशी अद्भुत है, यही कारण है कि यहां का हर कोना अपने आप में एक कहानी लिए हुए है। ऐसे में मणिकर्णिका घाट, बनारस की वो घाट है जहां पूरे समय दाह संस्कार होता रहता है क्योंकि यह घाट मोक्षदायिनी घाट के रूप में प्रसिद्ध है। कई लोग यहाँ मृत्यु के सच को करीब से महसूस करने या दुनिया से विरक्त होने का एहसास पाने जाते हैं और यहां घंटों बैठते हैं, लेकिन किसी सामान्य इंसान को यहां न जाने की सलाह दी जाती है।

माता पार्वती का श्राप

इस घाट के बारे में एक कहानी और प्रचलित है कि इस जगह को मां पार्वती का श्राप लगा हुआ है। यही कारण है कि यहां 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं और ये सिलसिला कभी बंद नहीं होगा। दरअसल प्रचलित कहानी के अनुसार एक बार मां पार्वती की कान की बाली यहां गिर गई जिसे बहुत ढूंढा गया लेकिन वो नहीं मिली। इसके बाद मां पार्वती बहुत गुस्से में आ गईं और उन्होंने श्राप दिया कि अगर मेरी बाली नहीं मिलती है तो यह स्थान हमेशा जलता रहेगा और तब से लेकर आज तक दुनिया इधर से उधर हो जाए यहां 24 घंटे चिताओं की अग्नि जलती रहती है।

मणिकर्णिका घाट पर जाने से क्यों मना किया जाता है?

मणिकर्णिका घाट पर कई कारणों से आम लोगों को जाने से मना किया जाता है। पहला और मुख्य कारण है कि मणिकर्णिका घाट पर सालभर 24 घंटे दाह-संस्कार चलते रहते हैं और इस कारण यहां मृत्यु का वातावरण हमेशा बना रहता है। यह स्थान मृत्यु से जुड़ा होने के कारण कई लोगों को मानसिक रूप से विचलित कर सकता है। जो लोग अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, वे यहां की वातावरण को सहन नहीं कर पाते। अगर किसी का ओरा (aura) कमजोर हो, तो उन्हें यहां निश्चित रूप से नहीं जाना चाहिए क्योंकि यहां मौजूद नकारात्मक शक्तियां उन्हें अपना शिकार बना सकती हैं।

शिव के कुंडल कहां हैं

मणिकर्णिका घाट पर शवों का दाह संस्कार होता है। चारों तरफ चिताएं जलती रहती हैं और ऐसा कहा जाता है कि यहां शव को जलाने से पहले उससे पूछा जाता है कि क्या उसने शिव जी के कान का कुंडल देखा है? यह बात शव के कान में पूछी जाती है और फिर उसका दाह संस्कार कर दिया जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है इसे एक रहस्य माना जाता है।

कथाएं

वैसे तो मणिकर्णिका घाट से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जैसे कि माता पार्वती का कर्णफूल (कान की बाली) का गिरी थी।

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