नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को है अर्पित! जानें पूजा की विधि और पौराणिक कथा ...
अत्याचार से त्रस्त होकर इंद्र और अन्य देवताओं ने देवी दुर्गा से प्रार्थना की;
नई दिल्ली। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। उन्हें बुराई को खत्म करने वाली देवी माना जाता है। मां कालरात्रि का रूप बहुत भयंकर है, उनका रंग काला है, बाल बिखरे हुए हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। उनके हाथों में तलवार, लौह अस्त्र, वरदान देने वाली मुद्रा और भय दूर करने वाली मुद्रा दिखाई देती है। उनकी सवारी गधा है।
मां कालरात्रि की पूजा से नकारात्मकता और बुरी शक्तियां होती हैं दूर ऐसी मान्यता है कि इस दिन उनकी पूजा करने से जीवन की सभी नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर हो जाती हैं। भक्तों के जीवन में सुरक्षा और शांति आती है।
मां कालरात्रि की कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, राक्षस शुंभ और निशुंभ ने अपने साथी दैत्य चंड, मुंड और रक्तबीज की मदद से देवताओं को पराजित कर दिया था और तीनों लोकों पर अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी। इस अराजकता और अत्याचार से त्रस्त होकर इंद्र और अन्य देवताओं ने देवी दुर्गा से प्रार्थना की। तभी माता ने अपने उग्र स्वरूप, देवी चामुंडा, को धारण किया और दुष्टों का संहार किया। विशेष रूप से माता काली ने चंड, मुंड और रक्तबीज का वध कर संपूर्ण जगत में शांति और संतुलन स्थापित किया। मां काली, देवी दुर्गा का सबसे उग्र रूप हैं। उन्हें नकारात्मक शक्तियों और बुरी ऊर्जा का नाश करने वाली देवी माना जाता है। वे अपने भक्तों के जीवन से अंधकार और भय को दूर करती हैं और उन्हें सुरक्षा, साहस और मानसिक शांति प्रदान करती हैं।
मां कालरात्रि पूजा विधि
पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहनें। इसके बाद पूजा की तैयारी करें। चौकी या पूजा स्थल के पास मां कालरात्रि की प्रतिमा या फोटो स्थापित कर गंगाजल से छिड़काव करें। फिर मां को लाल सिंदूर लगाएं। इसके बाद चुनरी, लाल-पीले फूल, फल, भोग, मिठाई आदि अर्पित कर पूजा-पाठ करे। अब धूप-दीप जलाकर मंत्र जाप करें और उसके बाद दुर्गा चालीसा पढ़ें या दुर्गा सप्तशती का पाठ करके मां की आरती करें। अंत में मां से क्षमा मांगे।
मां कालरात्रि का मंत्र
बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः
स्तोत्र मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
अन्य मंत्र: ॐ कालरात्र्यै नमः, या ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै