क्या अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर भी लागू होगा RTE और TET? अब मुख्य न्यायाधीश गवई करेंगे फैसला
अब यह मामला उनके समक्ष तय किया जाएगा कि क्या RTE और शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) के प्रावधान अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर भी लागू होंगे या नहीं।;
सुप्रीम कोर्ट में एक अहम मामला सामने आया है, जो देश की शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है। अदालत ने बुधवार को कहा कि बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा (RTE) से जुड़ी एक जनहित याचिका को आगे की कार्रवाई के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति गवई को भेजा गया है। अब यह मामला उनके समक्ष तय किया जाएगा कि क्या RTE और शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) के प्रावधान अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर भी लागू होंगे या नहीं।
यह याचिका नितिन उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई है कि धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह के स्कूलों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के दायरे में लाया जाए। इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ कर रही थी।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे ने तर्क दिया कि RTE अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) भेदभावपूर्ण हैं और संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि जहां गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों पर शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) लागू होती है, वहीं अल्पसंख्यक संस्थानों को इससे छूट दी गई है, जो समानता के सिद्धांत के विपरीत है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि सभी बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि RTE अधिनियम और TET परीक्षा सभी स्कूलों — चाहे वे अल्पसंख्यक हों या नहीं — पर समान रूप से लागू हों।
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर 2024 को अपने एक आदेश में इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजा था। अदालत ने 2014 के अपने फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उस समय प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत सरकार मामले में लिया गया निर्णय शिक्षा के सार्वभौमिक अधिकार को कमजोर करता है।
पीठ ने कहा था कि अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) से छूट देने से “समान स्कूली शिक्षा” की भावना कमजोर होती है और अनुच्छेद 21ए में निहित “सार्वभौमिक और समावेशी शिक्षा” की अवधारणा प्रभावित होती है।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 21ए राज्य को छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का आदेश देता है। RTE अधिनियम के तहत बच्चों को बुनियादी ढाँचा, प्रशिक्षित शिक्षक, किताबें, वर्दी और मध्याह्न भोजन जैसी सुविधाएं अनिवार्य रूप से मिलती हैं।
हालांकि, अभी तक अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान इस कानून के दायरे से बाहर हैं और उन पर इन प्रावधानों का पालन करना अनिवार्य नहीं है। अब यह देखना होगा कि मुख्य न्यायाधीश गवई की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील और अहम मुद्दे पर क्या फैसला सुनाता है।