साहित्यकारों से भरा हुआ है गाजियाबाद, जिन्होंने शहर का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया

Update: 2025-08-20 09:04 GMT

गाजियाबाद जिला साहित्यिक रूप से बहुत समृद्ध है। यहां ऐसे-ऐसे नामचीन कवि, शायर, कहानीकार और साहित्यकार हैं, जिन्होंने गाजियाबाद का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है। कुछ तो काल के गाल में समा चुके हैं मगर कुछ ऐसे नगीने हैं जो विश्वभर में अपनी चमक आज भी बरकरार रखे हुए हैं। उनकी लेखनी की गूंज देश की सरहदों को लांघकर दूसरे देशों के लोगों के दिलों में स्थान बना चुकी है। बहुत सारे युवा कवि व शायर भी हैं जो धीरे-धीरे देशभर में अपनी पहचान बनाने के सतत् प्रयास में जुटे हैं।

देश की आज़ादी से पहले की बात करें तो ग़ाज़ियाबाद का दायरा बहुत छोटा था। तब यह मेरठ जिले का हिस्सा हुआ करता था। तब कवि व संस्कृत के प्रकांड पंडित रामनाथ सुमन, कृष्ण मित्र, कन्हैया लाल मत्त, सुदर्शन कुमार चेतन, गोपाल कृष्ण कौल, वेद प्रकाश सुमन, सरस जी, हरप्रसाद शास्त्री, डॉ. मधु भारतीय की कविताएं धूम मचाया करती थीं तो सेरा यात्री की कहानियां देशभर की पत्ऱ-पत्रिकाओं में बड़े चाव से पढ़ी जाती थीं। क्षेमचंद्र सुमन भी उस समय गाजियाबाद रहा करते थे, उनकी लेखनी ने भी बहुत नाम कमाया। कृष्ण मित्र, सुदर्शन कुमार चेतन, सरस जी और सेरा यात्री ने तो अखबार व पत्रिकाएं भी प्रकाशित कर देश की आजादी की क्रांति में अभूतपूर्व सहयोग किया। कुलदीप तलवार के अखबार व पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों ने भी लोगों के दिलों में एक अलग जगह बनाई। पत्रकार तेलूराम काम्बोज ने दैनिक अखबार निकाला और देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह बाद में शहर के महापौर भी बने।

आज़ादी के बाद गाजियाबाद को अपनी कविताओं से और अधिक समृद्ध किया दुनिया भर में प्रसिद्ध कवि डॉ. कुंअर बेचैन ने। उनके 36 काव्य संग्रह, एक महाकाव्य, दर्जन भर डीवीडी व सीडी, आधा दर्जन फिल्मों में गीत आदि चर्चा में रहे। 22 से अधिक विद्यार्थियों ने उन पर शोधकार्य किया। दुनियाभर में आज भी लोग उनकी कविताओं, गीतों व गजलों को बड़े चाव से सुनते व पढ़ते हैं। डॉ. देवेन्द्र शर्मा इन्द्र नवगीतकार, गजलकार व दोहाकार हुए। सौ से अधिक पुस्तकें उनकी प्रकाशित हुईं। दर्जनभर विद्यार्थी उनपर पीएचडी और एक विद्यार्थी डी.लिट कर चुका है। डॉ. विष्णु सक्सेना, डॉ. धनंजय सिंह, डॉ. श्याम निर्मम, डॉ. रमा सिंह, मृदुला गर्ग, ब्रजेश भट्ट, मैसी निशांत, ब्रज अभिलाषी, इशरत कीरतपुरी, जमील हापुड़ी, ज़की तारिक, चेतन आनंद, नित्यानंद तुषार, सुरेन्द्र शर्मा, अनिल असीम, डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा, मीरा शलभ, ओम प्रकाश चतुर्वेदी पराग, कमलेश भट्ट कमल, बीके वर्मा शैदी, हेमंत कुमार, आलोक यात्री, शबाब औरंगाबादी, उत्कर्ष गाफिल, मुनीश बिल्सवी, अमिताभ मासूम, आचार्य मुनीश त्यागी, विनय संकोची जैसे नामों ने गाजियाबाद को नई रोशनी प्रदान की है। इनमें से ज्यादातर कवि व शायर आज भी देश-विदेश में अपनी पहचान कायम कर रहे हैं।

हर प्रसाद शास्त्री ने शिक्षा के क्षेत्र में झंडे गाड़ने के साथ हिन्दी साहित्य को बहुत ऊंचाइयां प्रदान कीं। वर्ष 1944 में शहर में गणतंत्र दिवस पर पहला कवि सम्मेलन मॉडल टाउन में करवाया। इसमें अपने ज़माने के नामचीन कवियों ने शिरकत की। मॉडल टाउन से यह कवि सम्मेलन लोगों की बढ़ती भीड़ व मांग पर शहर के बीचोंबीच घंटाघर पर होने लगा। देश का कोई कवि ऐसा नहीं है जो गाजियाबाद कविता सुनाने न आया हो। कवि इस आयोजन में शामिल होने के लिए लालायित रहा करते थे। लाल किले के ऐतिहासिक कवि सम्मेलन के बाद गाजियाबाद लोक परिषद द्वारा घंटाघर गाजियाबाद में आयोजित होने वाला कवि सम्मेलन देश का दूसरा बड़ा कवि सम्मेलन कहलाता था। हर प्रसाद शास्त्री के निधन के बाद इस कवि सम्मेलन को कुछ लोगों ने संभाला। तीन-चार साल तो घंटाघर पर ही यह कवि सम्मेलन हुआ मगर अब यह कवि सम्मेलन लोहिया नगर स्थित हिन्दी भवन में जनवरी महीने में हर साल होता है। इसकी कमान आजकल पार्षद हिमांशु लव और समाजसेवी ललित जायसवाल ने संभाली हुई है। उधर, गणतंत्र दिवस पर गाजियाबाद प्रशासन के सहयोग से अदबी संगम संस्था द्वारा शायर ज़की तारिक एक बड़ा मुशायरा कराया करते थे। इसमें भी देशभर के बड़े से बड़े नामचीन शायर अपना कलाम पेश कर चुके हैं। अब चार-पांच सालों से मुशायरा नहीं हो पा रहा है। शायद आर्थिक तंगी की वजह से जिला प्रशासन ने इससे अपने हाथ पीछे खींच लिये हैं।

पहले शामे शनिचर नाम से शहर में नशिस्त हुआ करती थीं। चौधरी सिनेमा के मालिक हरियंत कुमार चौधरी साहित्य के प्रति बहुत स्नेह व आदर रखते थे, इसलिए उन्होंने सिनेमाहॉल में ही ऊपर पहली मंज़िल पर एक गोष्ठी कक्ष बनवा रखा था। सब इसे चौधरी गोष्ठी कक्ष के नाम से जाना करते थे। पहले साहित्यिक गतिविधियां का मुख्य केन्द्र यही गोष्ठी कक्ष हुआ करता था। शहर की कलमकार मंच, अदबी संगम, शामे शनिचर, गाजियाबाद लोक परिषद आदि संस्थाओं की गोष्ठियां इसी में हुआ करती थीं। बाद में हर प्रसाद शास्त्री जी के अथक प्रयासों से गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने लोहिया नगर में हिन्दी भवन के लिए जगह दे दी। यहां कुछ कमरे बने, स्टेज बनी, शहर के समाज सेवकों की मदद से छत भी डाली गई। साहित्यिक कार्यक्रम इसमें होने लगे। लेकिन शास्त्री जी के आकस्मिक निधन के बाद शहर के समाज सेवक आशाराम पंसारी ने हिन्दी भवन की कमान संभाली। उन्होंने इसका कुछ निर्माण कराया लेकिन वह भी ज्यादा दिन तक इस दुनिया में न रहे। बाद में हिन्दी भवन समिति बनाई गई। शहर के पहले महापौर रहे दिनेश चंद गर्ग के नाम से एक भव्य और आधुनिक सभागार बनाया गया। आजकल इसमें शहर के बड़े कार्यक्रम होते हैं।

खूब चलती थीं काव्य कक्षाएं

शहर में यूं तो अनेक कवियों व शायरों ने अपने-अपने ढंग से नौजवान पीढ़ी को कविता और गजल की बारीकियां सिखाईं लेकिन डॉ. कुंअर बेचैन के यहां होने वाली काव्य कक्षाओं की बात ही कुछ और थी। उनके नेहरू नगर स्थित घर के ड्राइंग रूम में हम जैसे नवोदित कवि प्रत्येक गुरुवार को तय समय पर पहुँचते थे। शर्त थी कि सब अपनी नई कविताएँ लेकर आएंगे। उसी पर चर्चा हुआ करेगी। पहले गुरुवार आने वाले कवियों की संख्या तीन-चार ही थी। लेकिन धीरे-धीरे संख्या चार से छह, छह से दस, दस से बीस, बीस से तीस और फिर 35-36 तक पहुँच गई। होता यह था कि उनके घर का ड्राइंग रूम खचाखच भरने लगा। एक कवि अपनी कविता सुनाता। कुंअर जी कहते ‘बताओ क्या कमी है।’ सब अपनी-अपनी सामर्थ्य अनुसार कमियाँ बताते थे। एक कविता पर काफी देर तक चर्चा होती। अनेक सुझाव आते। अंततः कुंअर जी बताते कि किसका सुझाव सही है या किसका सही नहीं है। वह केवल इतना मात्र करते थे कि जिसकी रचना के बुत के कान सही नहीं बने, उसे सही से बना देते। नाक टेढ़ी रह गई तो उसे सीधा कर दिया करते। उन्होंने कभी अपने रंग में रँगने या पूरी की पूरी कविता अपनी ओर से देकर नवोदित कवियों को बैसाखियाँ थमाने का काम नहीं किया। वह दौर नवोदित कवियों का गोल्डन पीरियड था। उस दौरान सबने कविता की बहुत सारी बारीकियाँ सीखीं।

ये कवि हैं आजकल देश-दुनिया में सक्रिय

डॉ. विष्णु सक्सेना, मासूम गाजियाबादी, गोविन्द गुलशन, डॉ. कुमार विश्वास, डॉ. सरिता शर्मा, डॉ. सीता सागर, अंजु जैन, चेतन आनंद, विनोद पांडेय, तूलिका सेठ, बीएल बत्रा अमित्र, चंद्रभानु मिश्र, पीयूष मालवीय, डॉ. जयप्रकाश मिश्र, बीके वर्मा शैदी, अशोक पंकज, विजेन्द्र परवाज, ज़की तारिक, उत्कर्ष गाफिल, मीरा शलभ, अनूप पांडेय, दीपाली जैन ज़िया, अनिमेष शर्मा आदि।

शहर के कुछ कवियों की कविताएं

दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना,

जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना,

कोई उलझन ही रही होगी वो जो भूल गया,

मेरे हिस्से में कोई शाम सुहानी लिखना।

- डॉ. कुंअर बेचैन

रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा

एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं,

तुमने पत्थर-सा दिल हमको कह तो दिया,

पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।

- डॉ. विष्णु सक्सेना

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है,

तू मुझसे दूर कैसी है, मैं तुझसे दूर कैसा हूं,

ये मेरा दिल समझता है, या तेरा दिल समझता है।

-डॉ. कुमार विश्वास

किसने कहा है तुझसे तू बाहर तलाश कर,

अपनी कमी को अपने ही अंदर तलाश कर,

तू है नदी तो पर्वतों से आ, उतर भी आ,

नीचे उतरके अपना समुंदर तलाश कर।

- चेतन आनंद

 आइये बैठें जरा कुछ तथ्य की बातें करें,

मंच से हटकर अलग नेपथ्य की बातें करें,

रहनुमाओं ने हमें गुमराह इतना कर दिया,

अब चलो निज बुद्धि की, सामर्थ्य की बातें करें।

- कृष्ण मित्र

रात-रातभर चलते थे कवि सम्मेलन-मुशायरे

अब वो ज़माने गये, पहले रात आठ बजे कवि सम्मेलन और मुशायरे शुरू हुआ करते थे। लोग रजाइयां और कंबल ओढ़कर सुबह सूरज की पहली किरन फूटने तक कवियों व शायरों को सुना करते थे। रातभर चाय और मूंगफलियों का दौर चला करता था। एक कवि को दो या तीन-तीन बार सुना जाता था। लोगों का हुजूम उमड़ता था कविताएं व गजलें सुनने के लिए। लोग पूरी तैयारी के साथ आते थे तालियां बजाने और हूट करने के लिए भी। लेकिन आजकल दो या तीन घंटे का शो बन गया है कवि सम्मेलन या मुशायरा। पहले एक कवि की कविताओं को बार-बार सुना जाता था। एक-एक पंक्ति पर खूब हो हल्ला होता था। खूब दाद मिला करती थी। आजकल कविताओं पर तालियां बजाने के लिए संचालक बार-बार श्रोताओं से अनुरोध करते दिखाई देते हैं। श्रोताओं की संख्या भी पहले से काफी कम हो गई है।

अट्टहास कवि सम्मेलन हुआ मशहूर

गाजियाबाद शहर के कवि नगर रामलीला मैदान में अप्रैल महीने में अट्टहास कवि सम्मेलन होता है। इसमें आज भी बहुत लोग कविताएं सुनने के लिए उमड़ते हैं। हालांकि कविताओं की दृष्टि से तो श्रेष्ठ रचनाएं नहीं सुनाई पड़तीं, लेकिन हास्य के नाम पर लोगों की आमद खूब होती है। इसी तर्ज पर शालीमार गार्डन में उल्लास कवि सम्मेलन होने लगा है। इसमें साहित्यिक कवि कम और व्यवसायिक कवि ज्यादा आने लगे हैं।

ये संस्थाएं हैं सक्रिय

अखिल भारतीय साहित्य परिषद गाजियाबाद, गाजियाबाद लोक परिषद, श्रृंखला, कलमकार मंच, सम्प्रति, गीताभ, अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान, संस्कार भारती, भारत विकास परिषद, वैश्य समाज, महफिले बारादरी आदि।

सस्ते ऑडिटोरियम का टोटा

शहर की साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए शहर में कोई भी ऑडिटोरियम नहीं बना है। साहित्यिक कार्यक्रम कराने के लिए शहर के रईस और कथित समाज सेवकों के आगे संयोजकों को हाथ जोड़ने पड़ते हैं। हिन्दी भवन है मगर कुछ मुट्ठीभर लोगों के हाथों में इसका संचालन है। मोटा किराया देकर कार्यक्रम करवाने पड़ते हैं। हिन्दी साहित्य के नाम पर मोटा किराया दिया जाना मुश्किल होता है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने शहर में कोई भी ऐसा प्रयास नहीं किया है। किसी भी ऑडिटोरियम का संचालन अपने हाथ में नहीं रखा है। जबकि शहर के साहित्यकार काफी अरसे से शहर में सस्ता या मुफ्त ऑडिटोरियम मुहैया कराने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन अन्य शहरों की तरह यहां गाजियाबाद में कोई सहूलियत साहित्यकारों को नहीं मिली है।

चेतन आनंद, (कवि-पत्रकार)

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