2018 से 2023 के बीच 8% संक्रामक बीमारियाँ जानवरों से इंसानों में फैलीं: अध्ययन
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी, चेन्नई के वैज्ञानिकों ने बताया कि ऐसे संक्रमण हर साल जून, जुलाई और अगस्त के महीनों में अधिक सामने आए।;
भारत में 2018 से 2023 के बीच रिपोर्ट की गई संक्रामक बीमारियों के प्रकोपों में से लगभग आठ प्रतिशत मामले ऐसे थे जो जानवरों से इंसानों में फैले। इसे ज़ूनोटिक संक्रमण कहा जाता है, जैसा कि कोविड-19 महामारी में देखा गया था।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी, चेन्नई के वैज्ञानिकों ने बताया कि ऐसे संक्रमण हर साल जून, जुलाई और अगस्त के महीनों में अधिक सामने आए। उन्होंने यह भी पाया कि महामारी के बाद इन मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। अध्ययन में 6,948 प्रकोपों का विश्लेषण किया गया, जो इंटीग्रेटेड डिज़ीज़ सर्विलांस प्रोग्राम के तहत रिपोर्ट हुए थे। इनमें से 583 मामले (करीब 8.3 प्रतिशत) ज़ूनोटिक पाए गए।
इनमें सबसे ज़्यादा मामले जापानी एन्सेफलाइटिस (लगभग 29.5 प्रतिशत) के थे, इसके बाद लेप्टोस्पायरोसिस (18.7 प्रतिशत) और स्क्रब टाइफस (13.9 प्रतिशत) रहे। क्षेत्रवार विश्लेषण में पूर्वोत्तर भारत में सबसे अधिक (35.8 प्रतिशत) ज़ूनोटिक प्रकोप देखे गए, फिर दक्षिण भारत (31.7 प्रतिशत) और पश्चिम भारत (15.4 प्रतिशत) का स्थान रहा।
अध्ययन में यह भी बताया गया कि बीते कुछ वर्षों में बीमारी के मामलों की देर से रिपोर्टिंग में कमी आई है। 2019 में ऐसे मामले 52.6 प्रतिशत थे, जो 2021 में घटकर 40.9 प्रतिशत और 2023 में केवल 5.2 प्रतिशत रह गए। हालांकि पूरे अध्ययन काल के दौरान लगभग एक तिहाई प्रकोप देर से रिपोर्ट किए गए थे।
वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि अब तक खसरा, चिकनपॉक्स और डेंगू जैसी बीमारियों का तो अलग से विश्लेषण होता रहा है, लेकिन ज़ूनोटिक प्रकोपों पर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत समीक्षा नहीं हुई थी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कई हफ्तों की रिपोर्ट में फॉलो-अप की जानकारी नहीं थी, जिससे समय पर और सटीक फैसले लेने में मुश्किलें आती हैं। वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि ऐसे क्षेत्रों में, जहां इन बीमारियों की संभावना अधिक है, वहां विशेष निगरानी प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।