परिवार की जगह स्क्रीन से चिपक रहे हैं बच्चे, तो समय रहते संभल जाइए, 50 प्रतिशत स्कूली छात्रों की आंखों पर लग चुका है चश्मा

आजकल बच्चे मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, टीवी आदि पर अधिक समय देते हैं।;

By :  Aryan
Update: 2025-10-14 16:00 GMT

देहरादून। आजकल कम उम्र में ही बच्चों को चश्मा लग जाता है। इन दिनों उत्तराखंड में छोटे बच्चों में आंखों की बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। इस तरह के मामले अधिकतर देहरादून से ही आ रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार, अबतक लगभग 50 प्रतिशत से अधिक स्कूली छात्रों की आंखों पर चश्मा लग चुका है। डॉक्टरों के मुताबिक इसका सबसे बड़ा कारण मोबाइल है, लेकिन और भी कई वजह हैं जिससे आंखों का रोग बढ़ रहा है।

स्क्रीन टाइम का अधिक उपयोग बढ़ना

आजकल बच्चे मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, टीवी आदि पर अधिक समय देते हैं। आंखों पर नजदीकी काम बढ़ता है, जिससे मायोपिया या दृष्टि दोष की दर बढ़ती है। स्क्रीन पर लगातार काम करने से आंखों में थकावट, ड्राईआई सिंड्रोम, दृष्टि अस्पष्टता जैसी समस्याएं होती हैं। रील्स देखने की वजह से भी बच्चों की आंखों में ड्राइनेस बढ़ रही हैं, जो धीरे-धीरे आंखों की नसों को कमजोर कर रही हैं। जिससे उनकी नजरें कमजोर हो रही हैं।

बाहरी गतिविधियों की कमी

प्राकृतिक रोशनी में समय बिताना आंखों के विकास के लिए जरूरी है। बाहर खेलने‑कूदने और दूर‑दूर की चीजों को देखने से आंख की लंबाई नियंत्रित रहती है, जिससे मायोपिया की वृद्धि धीमी होती है। शहरी क्षेत्रों में पार्क या खुली जगहों की कमी, सुरक्षा की चिंता से बच्चों का अधिकतर समय घर या क्लास में बीतता है।

जंक फूड भी आंखें कमजोर होने कारण

डॉक्टरों के मुताबिक, आंखें कमजोर होने का दूसरा कारण जंक फूड भी है। जिस तरह से बच्चे जंक फूड की ओर बढ़ते जा रहे हैं। उससे भी ऐसी समस्याएं सामने उभर कर आ रही हैं। देहरादून अस्पताल में सबसे अधिक लोग आंखों की ओपीडी में दिखाने जाते हैं। जहां बुजुर्ग से लेकर छोटे बच्चे तक आंखों का इलाज कराने पहुंच रहे हैं।

पर्यावरणीय प्रदूषण और एलर्जी

धूल, मिट्टी, वाहन धुआं, औद्योगिक प्रदूषण और हाई ह्यूमिडिटी से भी आंखों में जलन, कंजंक्टिवाइटिस इत्यादि बीमारियां बढ़ाती हैं।

पोषण की कमी

विटामिन A, C, E, जिंक आदि की कमी से आंखों की रक्षा करने वाले ऊतकों की मजबूती कम होती है। असंतुलित आहार हरी सब्जियों और फल आदि का कम सेवन करना भी आंखों के रोग को बढ़ावा देता है।

गौरतलब है कि इन सब बातों पर ध्यान देकर हम अपने बच्चों में होने वाली आंखों की बीमारी को काफी हद तक रोक सकते हैं।


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