GST: स्वास्थ्य बीमा पर पेंच! जीएसटी 0 पर प्रीमियम में 3 से 5% तक की बढ़ोतरी, जानें पूरा खेल...

कंपनियां ITC नहीं मिलने पर भरपाई के लिए टैरिफ में 3-5% की वृद्धि कर सकती हैं।;

By :  Aryan
Update: 2025-09-08 07:00 GMT

नई दिल्ली। जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में एक अहम फैसला लिया गया है। काउंसिल ने स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा पॉलिसियों पर जीएसटी की दर को 18% से घटाकर शून्य करने का फैसला लिया है। मतलब अब हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर कोई भी जीएसटी नहीं लगेगा। यह छूट 22 सितंबर 2025, यानी नवरात्रि के पहले दिन से लागू हो जाएगी। इस फैसले से लोगों को लग रहा होगा कि अब इंश्योरेंस पॉलिसी लेना सस्ता हो जाएगा, क्योंकि 18% टैक्स नहीं देना पड़ेगा। लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रीमियम में 3 से 5% तक की बढ़ोतरी हो सकती है।

कंपनियां बढ़ा देंगी दरें

दरअसल कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी खत्म होने से ग्राहकों को फायदा होने के बजाय प्रीमियम में 3 से 5% तक की बढ़ोतरी झेलनी पड़ सकती है।

पहले बीमा कंपनियां एजेंट्स के कमीशन, विज्ञापन, पुनर्बीमा आदि पर खर्च करती थीं, उस पर मिलने वाले इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ लेती थी। लेकिन जीएसटी खत्म होने से ये कंपनियां अब ITC का दावा नहीं कर सकती है। इससे कंपनियों की लागत का ढांचा असंतुलित हो जाएगा, जिसे संतुलित करने के लिए वे पॉलिसी दरों में 3-5% तक की वृद्धि हो सकती है। यानी जो टैक्स राहत ग्राहकों को मिलने वाली थी, उसका सीधा फायदा बीमा कंपनियों की जगह उन्हीं से वसूले गए बढ़े हुए प्रीमियम में जुड़ जाएगा।

बीमा पॉलिसियों की कुल लागत 12-15% कम हो जाएगी

जानकारी के मुताबिक, जीएसटी हटने के बाद बीमा पॉलिसियों की कुल लागत 12-15% तक कम हो सकती है। कंपनियां ITC नहीं मिलने पर भरपाई के लिए टैरिफ में 3-5% की वृद्धि कर सकती हैं। इससे बाजार में बीमा की मांग थोड़ी बढ़ सकती है, लेकिन आम ग्राहकों को प्रीमियम का लाभ शायद ही मिलेगा।

यह फैसला आम लोगों के लिए मुनाफे वाला नहीं

विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार का यह कदम जनता को सस्ते बीमा की उम्मीद दिलाने के बाद महंगे प्रीमियम के रूप में झटका देने वाला है। जिन लोगों को जीएसटी खत्म होने से राहत लग रही थी, उन्हें आने वाले दिनों में निराशा हो सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि जीएसटी हटने से जो टैक्स राहत मिलेगी, वह अब सीधे ग्राहक के खाते में नहीं जाएगी, बल्कि कंपनियों की लागत बढ़ने से वे उसे स्वंय के पास रखेंगी।


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