यदि किसी साधक को शत्रुओं पर पानी हो विजय तो करें मां 'छिन्नमस्ता देवी' के दर्शन, जानें माता के रहस्यमयी रूप के बारे में...

यह मंदिर भैरवी और दामोदर नदियों के संगम पर एक पहाड़ी पर बना है और इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है।;

By :  Aryan
Update: 2025-11-19 02:30 GMT

छिन्नमस्ता देवी हिंदू धर्म में दस महाविद्याओं में से एक अत्यंत शक्तिशाली और रहस्यमयी रूप हैं। उनका स्वरूप ऊर्जा, बलिदान, आत्मसंयम और शक्ति के चरम रूप का प्रतीक माना जाता है। छिन्नमस्ता देवी का मंदिर झारखंड के रामगढ़ जिले में राजरप्पा में स्थित है। यह मंदिर भैरवी और दामोदर नदियों के संगम पर एक पहाड़ी पर बना है और इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है।

छिन्नमस्ता देवी का स्वरूप

यहां देवी को स्वयं का सिर काटे हुए दर्शाया जाता है, पर वो शक्ति और चेतना से पूर्ण रहती हैं। उनका स्वरूप मुख्य रूप से यह दर्शाता है वे अपने ही कटे हुए सिर को हाथ में धारण करती हैं

उनके गले से तीन रक्तधाराएं निकलती हैं

1. एक स्वयं उनके कटे हुए सिर से 

2. एक डाकिनी से 

3. एक शाकिनी से 

मां एक युगल के ऊपर खड़ी दिखाई देती हैं जो काम–ऊर्जा (कुंडलिनी शक्ति) का प्रतीक है। देवी का स्वरूप भीषण है लेकिन अत्यंत कल्याणकारी माना जाता है

देवी का प्रतीकात्मक अर्थ

छिन्नमस्ता मां का रूप कई गहरे आध्यात्मिक रहस्यों को दर्शाता है-

1. आत्म–बलिदान और निःस्वार्थता

अपना सिर काटकर भी दूसरों को पोषित करना। यह दर्शाता है कि सच्ची शक्ति निःस्वार्थ त्याग में है।

2. काम और ज्ञान का संतुलन

वे युगल के ऊपर खड़ी हैं, जिससे अर्थ है कि इन्द्रियों पर नियंत्रण आध्यात्मिक मार्ग का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

3. जीव–शक्ति का उदय

देवी की तीन रक्तधाराएं तीन नाड़ियों – इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का प्रतीक भी मानी जाती हैं।

4. भय पर विजय

उनका रूप यह सिखाता है कि साधक को हर भय चाहे मृत्यु ही क्यों न हो, पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।

छिन्नमस्ता देवी की पूजा

उनकी उपासना सामान्य पूजा की तरह नहीं होती। यह एक तांत्रिक साधना मानी जाती है। साधक को गुरु के मार्गदर्शन में ही पूजा करनी चाहिए।

देवी की कृपा से दूर होती बाधाएं

शत्रु भय समाप्त होता है। व्यक्तित्व में आत्मबल आता है। साधक को अद्भुत मानसिक शक्ति प्राप्त होती है।

छिन्नमस्ता देवी का मंत्र

सबसे प्रसिद्ध मंत्र:

ॐ श्री छिन्नमस्तिकायै नमः अथवा ह्रीम ह्रूं क्रीं छिन्नमस्तिकायै नमः

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