Kharna 2025: छठ महापर्व में खरना का है विशेष महत्व! जानें क्यों बनाई जाती है गुड़ की खीर और रोटी?

Update: 2025-10-26 02:30 GMT

नई दिल्ली। छठ महापर्व में खरना का विशेष महत्व है, जो शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक है। खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन का निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को सूर्य देव की पूजा करके गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

खरना का महत्व

पवित्रता और शुद्धि: 'खरना' का अर्थ शुद्धता है। यह व्रत व्रतियों को मानसिक और शारीरिक रूप से 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत के लिए तैयार करता है।

छठी मैया का आगमन: ऐसी मान्यता है कि खरना के दिन ही छठी मैया व्रती के घर में प्रवेश करती हैं।

भक्ति और समर्पण: यह दिन पूरी तरह से भक्ति, संयम और समर्पण को दर्शाता है, जिसमें व्रती सूर्य देव और छठी मैया की कृपा प्राप्त करते हैं।

गुड़ की खीर और रोटी का महत्व

खरना के प्रसाद में गुड़ की खीर (जिसे रसिया भी कहते हैं) और रोटी विशेष रूप से बनाई जाती है, जिसके कई कारण हैं:

पवित्रता का प्रतीक: खरना के प्रसाद में चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि उसे अशुद्ध माना जाता है। गुड़ की खीर शुद्धता और सादगी का प्रतीक होती है।

स्वास्थ्य और ऊर्जा: खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है। गुड़, चावल और दूध से बनी यह खीर व्रतियों को व्रत के लिए आवश्यक ऊर्जा और पोषण देती है।

सरलता का प्रतीक: गेहूं के आटे से बनी रोटी सादगी और सरलता को दर्शाती है। यह प्रसाद बिना किसी तामझाम के, भक्ति और समर्पण से तैयार किया जाता है।

पारंपरिक तरीका: खरना का प्रसाद पारंपरिक रूप से मिट्टी के नए चूल्हे और आम की लकड़ी पर पकाया जाता है, जो इसकी पवित्रता को और बढ़ा देता है।

सामुदायिक सद्भाव: खरना का प्रसाद सबसे पहले सूर्य देव और छठी मैया को चढ़ाया जाता है। इसके बाद व्रती इसे ग्रहण करते हैं और परिवार के सदस्यों, दोस्तों और पड़ोसियों के साथ भी बाँटते हैं। इससे आपसी मेल-जोल और भाईचारा बढ़ता है

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