NCRTC: उत्तर प्रदेश में एनसीआरटीसी करेगा 110 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा प्लांट का निर्माण, जानें इसके फायदे
नई दिल्ली। एक सतत एवं हरित इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए एनसीआरटीसी निरंतर प्रयासरत रहा है और दिल्ली-गाज़ियाबाद-मेरठ नमो भारत कॉरिडोर पर्यावरण- अनुकूल बनाने के लिए कई प्रयत्न करता रहता है। इसी दिशा में एक और बड़ा कदम उठाते हुए उत्तर प्रदेश में 110 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा प्लांट का निर्माण करने जा रहा है। यह कार्य एनएलसी इंडिया लिमिटेड (NLC) को सौंपा गया है, जो भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन आने वाला एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। एनएलसी इंडिया लिमिटेड को यह कार्य ओपन टेंडर के माध्यम से दिया गया है। इस प्लांट का कार्य अगले 24 महीनों में पूरा होने की उम्मीद है और अनुमानित है कि इसके माध्यम से इस कॉरिडोर की कुल विद्युत आवश्यकता का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा पूरा किया जा सकेगा।
इस परियोजना के साथ, देश में आरआरटीएस और मेट्रो ट्रांजिट सिस्टम में कैप्टिव सोलर पावर प्लांट की पहल की जा रही है। इसके अंतर्गत, एनसीआरटीसी और एनएलसी इंडिया लिमिटेड (NLC) संयुक्त उद्यम के माध्यम से यह सौर ऊर्जा प्लांट स्थापित करेंगे। यह प्लांट उत्तर प्रदेश में स्थापित किया जाएगा और इसे प्रदेश की ग्रिड से जोड़ा जाएगा। प्रदेश की ग्रिड के माध्यम से नमो भारत कॉरिडोर पर बने रिसीविंग सब-स्टेशनों (आरएसएस) तक विद्युत आपूर्ति की जाएगी, जहां से पूरे कॉरिडोर को बिजली उपलब्ध कराई जाएगी।
यह परियोजना पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण प्रयास है। अनुमान है कि इस पहल से प्रतिवर्ष लगभग 1,77,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे स्वच्छ और सतत शहरी परिवहन को बढ़ावा मिलेगा।
दिल्ली-गाज़ियाबाद-मेरठ नमो भारत कॉरिडोर के संचालन में विद्युत व्यय एक प्रमुख खर्च है। एनसीआरटीसी के कुल परिचालन खर्च का लगभग 30 से 35 प्रतिशत हिस्सा विद्युत संबंधी ज़रूरतों में ख़र्च होता है। अनुमानित है कि इस सौर ऊर्जा प्लांट के चालू होने के बाद विद्युत व्यय में लगभग 25 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी आएगी।
एनसीआरटीसी की यह पहल राष्ट्रीय सौर मिशन के भी अनुरूप है और अपने परिवहन सिस्टम में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम है। यह परियोजना शहरी परिवहन विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। साथ ही, यह पहल शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी सहायक बनेगी। जीवाश्म ईंधन से उत्पादित बिजली की तुलना में सौर ऊर्जा आधारित प्रणालियाँ नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) जैसे हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं करतीं, जो वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं के प्रमुख कारण हैं। इससे दिल्ली–एनसीआर क्षेत्र में स्वच्छ हवा और बेहतर जीवन गुणवत्ता को भी बढ़ावा मिलेगा।
सौर ऊर्जा के एकीकरण की दिशा में की जा रही यह पहल, संभावित है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के क्षेत्र में एक मॉडल परियोजना के रूप में उभरे और भविष्य में अन्य शहरी और क्षेत्रीय परिवहन परियोजनाओं को भी स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के लिए प्रोत्साहित करे।