प्लास्टिक में पाए जाने वाला रसायन है दिल के लिए खतरनाक, नए अध्ययन में सामने आई चौंकाने वाली जानकारी
अध्ययन के अनुसार, भारत में इस रसायन के संपर्क में आने से सबसे ज्यादा 1,03,587 मौतें हुईं, जिसके बाद चीन और इंडोनेशिया का स्थान रहा। यह अध्ययन ‘ईबायोमेडिसिन’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।;
क्या आप भी ज्यादातर पैक्ड फूड पर निर्भर रहते हैं तो जरा सावधान हो जाइए। एक हालिया अध्ययन में बताया गया है कि प्लास्टिक उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले एक सामान्य रसायन 'फ्थेलेट्स' से 2018 में दुनियाभर में करीब 3.5 लाख लोगों की मौतें दिल की बीमारियों के कारण हुईं। इनमें से 13 प्रतिशत मौतें 55 से 64 वर्ष की उम्र के लोगों में दर्ज की गईं।
अध्ययन के अनुसार, भारत में इस रसायन के संपर्क में आने से सबसे ज्यादा 1,03,587 मौतें हुईं, जिसके बाद चीन और इंडोनेशिया का स्थान रहा। यह अध्ययन ‘ईबायोमेडिसिन’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में 200 देशों और क्षेत्रों में लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ा डेटा इकट्ठा किया गया। इसमें यह देखा गया कि लोगों में 'डाय-2-एथिलहेक्सिल फ्थेलेट (DEHP)' नामक फ्थेलेट की कितनी मात्रा पाई गई और इसका क्या असर हुआ। यह रसायन अक्सर प्लास्टिक को मुलायम और लचीला बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, जैसे कि खाने के डिब्बों में।
वैज्ञानिकों ने पेशाब के नमूनों की जांच के जरिए यह पता लगाया कि यह रसायन शरीर में किस हद तक पहुंच रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि यह रसायन दिल की धमनियों में सूजन पैदा कर सकता है, जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
यह भी पाया गया कि कुल मौतों का लगभग तीन चौथाई हिस्सा दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में हुआ, जहां फ्थेलेट्स का इस्तेमाल अधिक है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाए जा रहे ‘ग्लोबल प्लास्टिक संधि’ के लिए मददगार हो सकती है। यह संधि प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए दुनिया की पहली कानूनी रूप से बाध्यकारी पहल है।
अध्ययन में यह भी कहा गया कि भारत में प्लास्टिक उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और यहां फ्थेलेट्स के संपर्क में आने का खतरा अधिक है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि इन रसायनों के कारण सिर्फ दिल की बीमारी नहीं बल्कि मोटापा, बांझपन और कैंसर जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने बताया कि ऐसे क्षेत्रों में जहां औद्योगीकरण और प्लास्टिक की खपत तेज़ी से बढ़ रही है, वहां फ्थेलेट्स से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए वैश्विक नियम बनाने की ज़रूरत है।