ऑपरेशन सिंदूर की बहस से शशि थरूर, मनीष तिवारी को रखा गया बाहर, इसे लेकर मनीष तिवारी ने किया तंज भरा पोस्ट...
पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा और सलमान खुर्शीद भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे;
नई दिल्ली। कांग्रेस ने ऑपरेशन सिंदूर के मुद्दे पर हो रही बहस में उन नेताओं को शामिल नहीं किया है, जो कि कभी उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हुआ करते थे। जिन्होंने पहलगाम हमले के बारे में पूरी दुनिया को जानकारी दी।
ऑपरेशन सिंदूर की बहस में शामिल नहीं किया गया
ऑपरेशन सिंदूर की बहस में कुछ दिग्गज नेताओं को जगह नहीं मिली है, उनमें तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर, चंडीगढ़ से सांसद मनीष तिवारी और फतेहगढ़ साहिब के सांसद अमर सिंह शामिल हैं। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा और सलमान खुर्शीद भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, लेकिन वे वर्तमान में संसद के सदस्य नहीं हैं। इसी मुद्दे को लेकर मनीष तिवारी ने तंज कसते एक न्यूज का स्क्रीनशॉट शेयर किया है।
मनीष तिवारी ने शेयर किया तंजभरा पोस्ट
पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद मनीष तिवारी ने आज एक न्यूज रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट साझा किया कि उनको और शशि थरूर को बहस में क्यों शामिल नहीं किया गया। मनीष तिवारी ने अपनी एक्स पर पोस्ट में पूरब और पश्चिम (1970) के सदाबहार देशभक्ति गीत के साथ कैप्शन दिया है: है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं। जय हिंद
आखिर शशि थरूर और मनीष तिवारी को क्यों रखा गया ऑपरेशन सिंदूर की बहस से बाहर
कांग्रेस सांसद के हवाले से खबर आई है कि पार्टी ने चर्चा के दौरान संसद में बोलने के लिए नए सांसदों को चुना क्योंकि विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधिमंडलों ने सरकार के पक्ष में बात की है। जानकारी के मुताबिक, भारत के लोगों की चिंताओं को आवाज़ देने का समय आ चुका है। इसलिए पार्टी ने सदन में बोलने के लिए नए लोगों का चुनाव किया है।
शशि थरूर और मनीष तिवारी की दिशा का रूख अलग होता है
कांग्रेस शशि थरूर जैसे नेता को लेकर पहले से ही असहज थी कि, शशि कई मुद्दों पर पार्टी से दिशा का रूख अलग होता हैं, उन्हें विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था। गौरतलब है कि उरी हमले के बाद भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक और हालिया ऑपरेशन सिंदूर की सार्वजनिक सराहना भी पार्टी को नागवार गुज़री थी। सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी जैसे बढ़िया बोलने वाले नेताओं को भी सरकार के रुख का समर्थन करने के लिए कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी। इसलिए पार्टी को आशंका हुई कि ये नेता सरकार के पक्ष में ज्यादा बेहतर तर्क रख सकते हैं, इसलिए उन्हें बहस से बाहर रखना ठीक रहेगा।