‘6th सेंस से लगा सुलह संभव है’; सुप्रीम कोर्ट ने रेप मामले में आरोपी की 10 साल की सजा की रद्द

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह उन दुर्लभ मामलों में से एक है, जहां गलतफहमी के कारण आपसी सहमति से बने संबंध को आपराधिक रंग दे दिया गया था।;

Update: 2025-12-27 21:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के एक अहम मामले में असाधारण फैसला सुनाते हुए आरोपी को दी गई 10 साल की सजा को रद्द कर दिया है। अदालत ने यह निर्णय इस आधार पर लिया कि शिकायतकर्ता महिला और आरोपी ने आपसी सहमति से विवाह कर लिया है और अब दोनों साथ रह रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह उन दुर्लभ मामलों में से एक है, जहां गलतफहमी के कारण आपसी सहमति से बने संबंध को आपराधिक रंग दे दिया गया था।

यह फैसला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनाया। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया, तो तथ्यों पर विचार करने के बाद उन्हें “छठी इंद्रिय” से यह आभास हुआ कि यदि दोनों पक्ष विवाह करने का निर्णय लें, तो उन्हें फिर से एक साथ लाया जा सकता है।

अदालत ने बताया कि इस मामले में दोनों पक्षों ने इसी साल जुलाई में शादी कर ली थी और तब से वे साथ रह रहे हैं। पांच दिसंबर को दिए गए फैसले में पीठ ने कहा, “यह उन दुर्लभ मामलों में से एक है, जहां इस अदालत के हस्तक्षेप के बाद अपीलकर्ता को अंततः दोषसिद्धि और सजा दोनों से राहत मिली है।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया गया है।

गौरतलब है कि इससे पहले निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी और उस पर 55,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। अप्रैल 2024 में आरोपी ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सजा निलंबित करने की अपील की थी, लेकिन वहां से उसे कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

पीठ ने बताया कि सुनवाई के दौरान उसने अपीलकर्ता और महिला से उनके माता-पिता की मौजूदगी में बातचीत की थी। बातचीत से यह स्पष्ट हुआ कि दोनों एक-दूसरे से विवाह करना चाहते हैं और उनके परिवार भी इस रिश्ते से सहमत हैं। इसी आधार पर अदालत ने आरोपी को अंतरिम जमानत दी थी, जिसके बाद जुलाई में दोनों का विवाह संपन्न हुआ।

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2015 में आरोपी और महिला की मुलाकात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हुई थी। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के करीब आए और आपसी सहमति से उनके बीच शारीरिक संबंध बने। महिला का आरोप था कि आरोपी ने विवाह का झूठा वादा किया था, लेकिन अदालत का मानना है कि शादी की तय तारीख को टालने से महिला में असुरक्षा की भावना उत्पन्न हुई होगी, जिसके कारण उसने नवंबर 2021 में प्राथमिकी दर्ज कराई।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि अब दोनों की शादी हो चुकी है, वे साथ रह रहे हैं और दोनों पक्षों के वकीलों ने भी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने पर सहमति जताई है, इसलिए एफआईआर और ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द किया जाना उचित है। सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि सजा के कारण आरोपी को अपनी नौकरी से निलंबित कर दिया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के सागर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) को निर्देश देने की बात कही कि सस्पेंशन का आदेश रद्द किया जाए और बकाया वेतन का भुगतान किया जाए।

यह फैसला कानून, सहमति और सामाजिक परिस्थितियों के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण नज़ीर के रूप में देखा जा रहा है।

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