मां का गुजर जाना क्या तारिक रहमान को पड़ेगा भारी या राजनीति में मिलेगी सहानुभुति...
पति की हत्या के बाद खालिदा जिया ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। वो साल 1984 में बीएनपी की अध्यक्ष बनी थीं;
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष खालिदा जिया का निधन होना बांग्लादेश की राजनीति और बीएनपी पार्टी के लिए अपूरणीय क्षति है। खालिदा जिया बीएनपी पार्टी की मजबूत स्तंभ थी। बांग्लादेश की राजनीति में उनका अपना वर्चस्व था। बता दें कि आगामी साल फरवरी में देश में चुनाव होना है, और ऐसे समय में खालिदा का जाना पार्टी के लिए नई चुनौती पैदा कर सकता है। हालांकि, लंबे समय से लंदन में रह रहे उनके बेटे तारिक रहमान भी हाल में अपने देश लौट चुके हैं। दरअसल तारिक रहमान को अगले पीएम के दावेदार के रुप में देखा जा रहा है। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजनीति के सफर में दिवंगत खालिदा के बेटे को जनता का समर्थन मिलेगा।
तारिक रहमान को सहानुभूति मिलने की संभावना है अधिक
गौरतलब है कि कई विशेषज्ञों की राय में इस चुनाव में खालिदा जिया के निधन के बाद उनके बेटे तारिक रहमान को जनता का समर्थन और सहानुभूति मिलने की संभावना अधिक है। लेकिन इसके बीएनपी को अपने पुराने समर्थकों को जोड़े रखना और चुनावी रणनीति को मजबूती देना होगा।
पार्टी में हलचल की आशंका
वहीं दूसरी तरफ यह भी है कि अचानक तारिक रहमान के लिए पार्टी का नेतृत्व संभालना भी आसान होगा। खालिदा जिया के पार्टी में योगदान और उनके बेटे होने के कारण उनकी पार्टी को जनता से सहानुभूति मिल सकता है, पार्टी को संगठन और नेतृत्व में उतार-चढ़ाव का भी सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं इसका फायदा अपोजिशन यानी अन्य पार्टी को भी मिल सकता है।
खालिदा जिया का परिचय
खालिदा जिया का जन्म साल 1945 में भारत के जलपाईगुड़ी में हुआ था। वर्ष 1959 में उनका निकाह जियाउर रहमान से हुई, जो बाद में बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने। लेकिन 1981 में जियाउर रहमान की सैन्य अधिकारियों ने उनकी हत्या कर दी थी, जिसके बाद खालिदा जिया के जीवन में अलग मोड़ आ गया।
राजनीति में प्रवेश और सत्ता का सफर
पति की हत्या के बाद खालिदा जिया ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। वो साल 1984 में बीएनपी की अध्यक्ष बनीं। उनके नेतृत्व में विपक्ष ने 1991 का चुनाव जीता और खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। वह तीन बार पीएम रह चुकी थी। उनका पहला कार्यकाल मार्च 1991 से फरवरी 1996 तक था, दूसरा कार्यकाल फरवरी 1996 के बाद कुछ सप्ताह तक चला और तीसरा कार्यकाल अक्टूबर 2001 से अक्टूबर 2006 तक था।