डॉ. चेतन आनंद
नई दिल्ली। भारत की बेटियां आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। विज्ञान की प्रयोगशालाओं से लेकर खेल के मैदानों तक, उद्यमों से लेकर काव्य और कूटनीति तक, हर जगह भारतीय नारी ने अपने साहस, प्रतिभा और लगन से देश का गौरव बढ़ाया है। पिछले दस वर्षों (सन् 2015 से 2025) का यह कालखंड भारत की छोरियों के लिए स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज हो चुका है।
भारतीय नारी की उपस्थिति आज विश्व के किसी भी देश से कम नहीं
विज्ञान और अंतरिक्ष में भारतीय नारी का उत्कर्ष-भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में अब महिलाओं की भागीदारी केवल सहायक नहीं, बल्कि नेतृत्व की बन चुकी है।चन्द्रयान-2 और चन्द्रयान-3 अभियानों में वैज्ञानिक डॉ. ऋतु करिधल श्रीवास्तव तथा वनीता रंगनाथन मुख्य अभियंता दल का हिस्सा रहीं। जब भारत ने 2023 में चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपने यान विक्रम को सफलतापूर्वक उतारा तो इस उपलब्धि में महिलाओं का योगदान निर्णायक था। रक्षा अनुसन्धान में टेस्सी थॉमस, जिन्हें “भारत की क्षेपणास्त्र नारी” कहा जाता है, 2015 में मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैज्ञानिक नेतृत्व का प्रतीक बनीं। स्वास्थ्य-विज्ञान में डॉ. सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रधान वैज्ञानिक बनीं, जो भारत के लिए गर्व का विषय रहा। इस प्रकार विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में भारतीय नारी की उपस्थिति आज विश्व के किसी भी देश से कम नहीं रही।
उद्यमिता और अर्थ निर्माण में अग्रणी बेटियां-यदि विज्ञान ने आसमान छुआ तो भारतीय महिलाओं ने उद्यमिता के क्षेत्र में धरती पर आर्थिक परिवर्तन की मिसाल कायम की। सन् 2018 में फाल्गुनी नायर ने नायका नामक सौन्दर्य-व्यवसाय की स्थापना की, जो शीघ्र ही अरबों रुपये मूल्य की कंपनी बन गई। यह भारत की पहली सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध महिला स्थापित कंपनी बनी। विनीता सिंह की शुगर कॉस्मेटिक्स और गजल अलग की मामाअर्थ ने भी यह सिद्ध कर दिया कि आधुनिक भारत की महिलाएं केवल भागीदारी नहीं, बल्कि उद्योग-जगत की निर्णायक शक्ति बन चुकी हैं। नवउद्यम मंचों के अनुसार, देश में लगभग 20 प्रतिशत नये उद्योग महिलाओं द्वारा स्थापित हैं और लगभग 40 प्रतिशत महिला उद्यमी अपने व्यवसाय को अकेले संचालित करती हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारतीय नारी अब आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में निर्णायक रूप से आगे बढ़ रही है।
रजत पदक जीतकर इतिहास रचा
साहित्य और कला में वैश्विक मान्यता-भारतीय स्त्रीलेखन अब विश्व साहित्य में अपना स्वाभाविक स्थान बना चुका है। सन् 2025 में बानु मुश्ताक और अनुवादिका दीपा भस्थी को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राप्त हुआ। यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय भाषा कन्नड़ की कहानियों का संग्रह यह सम्मान जीत सका। 2017 में कवयित्री अरुंधति सुब्रमण्यम का काव्य संग्रह व्हेन गॉड इज़ ए ट्रैवेलर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित हुआ। ये उपलब्धियां दिखाती हैं कि भारतीय महिलाएं अपनी मातृभाषाओं और जीवनानुभवों को विश्व संवाद की भाषा में रूपान्तरित कर रही हैं। कला और चलचित्र के क्षेत्र में जोया अख्तर, रीमा कागती तथा गायत्री पुष्पक जैसी निर्देशिकाओं ने भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नई पहचान दी है।
खेलों में स्वर्णिम अध्याय-भारत की महिला खिलाड़ियों ने विश्व खेल मंचों पर देश का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया है। 2016 के रियो ओलम्पिक में पी. वी. सिंधु ने रजत पदक जीतकर इतिहास रचा।
स्वर्ण पदक जीतकर रचा इतिहास
2021 में मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में रजत पदक अर्जित किया। 2022 में निकहत जरीन ने विश्व मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर नया अध्याय जोड़ा। 2025 में भारतीय महिला क्रिकेट दल ने दक्षिण अफ्रीका को पराजित कर अपना पहला विश्व कप जीता। यह सफलता महिलाओं के खेल इतिहास में वैसी ही रही जैसी 1983 में पुरुष क्रिकेट की थी। कप्तान हरमनप्रीत कौर और उपकप्तान स्मृति मंधाना आज युवतियों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। मंधाना ने 2024 में एक वर्ष में 763 रन बनाकर विश्व टी20 का रिकॉर्ड कायम किया। शतरंज में 19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने विश्व महिला शतरंज कप जीतकर भारत को नई ऊंचाई दी। अरुणाचल प्रदेश की हिलांग याजिक ने दक्षिण एशियाई बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा।
न्याय व्यवस्था में महिला प्रतिनिधित्व दोगुना हुआ
नीति और समाज सेवा में भूमिका-भारत की महिलाएं अब केवल विज्ञान या खेल तक सीमित नहीं बल्कि नीति निर्माण और सामाजिक परिवर्तन की वाहक भी बन रही हैं। 2025 में नीना गुप्ता, जो संयुक्त राष्ट्र महिला भारत शाखा से जुड़ी हैं, उन्हें लैंगिक समानता अभियानों में योगदान के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला। भारत में भी प्रशासन और न्याय व्यवस्था में महिला प्रतिनिधित्व दोगुना हुआ है। नीति आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, वरिष्ठ प्रशासनिक सेवाओं में महिलाओं की संख्या पिछले दशक की तुलना में 90 प्रतिशत तक बढ़ी है। यह परिवर्तन समाज के निर्णय प्रक्रिया में महिला दृष्टिकोण की उपस्थिति को सशक्त बनाता है।
दशकीय उपलब्धियों की झलक
वर्ष क्षेत्र प्रमुख नाम उपलब्धि
2015 विज्ञान टेस्सी थॉमस क्षेपणास्त्र प्रौद्योगिकी में नेतृत्व
2016 खेल पी. वी. सिंधु ओलम्पिक रजत पदक
2018 उद्यम फाल्गुनी नायर ‘नायका’ को यूनिकॉर्न दर्जा
2019 शतरंज कोनेरु हुम्पी विश्व रैपिड विजेता
2020 स्वास्थ्य डॉ. सौम्या स्वामीनाथन विश्वस्वास्थ्य संगठन में प्रमुख वैज्ञानिक
2021 खेल मीराबाई चानू ओलम्पिक रजत पदक
2022 मुक्केबाज़ी निकहत ज़रीन विश्व विजेता
2023 अंतरिक्ष ऋतु करिधल ‘चन्द्रयान-3’ में प्रमुख भूमिका
2024 क्रिकेट स्मृति मंधाना सर्वाधिक रन, विश्व रिकॉर्ड
2025 साहित्य बानु मुश्ताक अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार
परिवर्तन की दिशा और चुनौतियां-यह दशक नारीदृउत्कर्ष का रहा है, पर चुनौतियां अभी समाप्त नहीं हुईं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं की भागीदारी लगभग 33 प्रतिशत है, किन्तु नेतृत्व स्तर पर यह अनुपात अभी आधा भी नहीं। उद्यमिता में महिलाओं की संख्या बढ़ी है, पर पूंजी निवेश और विपणन सहायता अभी सीमित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभाओं को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण और डिजिटल साधनों की आवश्यकता है। सरकारी योजनाएं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्टार्टअप इंडिया बीज निधि योजना और विज्ञान में महिलाएं कार्यक्रम इन बाधाओं को कम करने की दिशा में सक्रिय हैं।
सन् 2015 से 2025 तक की यह यात्रा भारतीय नारीशक्ति के आत्मविश्वास और कर्मठता की गाथा है। अब “किसी से कम नहीं हैं भारत की छोरियां” सिर्फ नारा नहीं, बल्कि यथार्थ है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि अवसर मिले तो भारत की बेटियां विज्ञान में तारे खोज सकती हैं, साहित्य में संवेदनाएं लिख सकती हैं, उद्योग में नई अर्थनीति बना सकती हैं और खेलों में विश्व विजेता बन सकती हैं। भारत का यह दशक स्त्रीशक्ति के उत्कर्ष का दशक है, जहां हर दिशा में यह स्वर गूंज रहा है-“हम वो हैं जो इतिहास नहीं, भविष्य लिख रही हैं।”