एक ऐसा ज्योतिर्लिंग जहां एक साथ विराजते हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश, कालसर्प और पितृ दोष की कराई जाती है विशेष पूजा
नासिक। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के नासिक के पास स्थित, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और अद्वितीय है क्योंकि यहां एक ही शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव निवास करते हैं, जिसे तीन मुख वाले शिवलिंग के रूप में देखा जाता है, और यह कालसर्प दोष, पितृ दोष तथा अन्य ग्रह बाधाओं के निवारण के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहां नारायण नागबली और त्रिपिंडी श्राद्ध जैसी पूजाएं की जाती हैं, जो दिवंगत आत्माओं की शांति और समस्याओं से मुक्ति दिलाती हैं.
गौतम ऋषि की है तपोस्थली
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग वही स्थान है, जहां महादेव की कृपा से ‘दक्षिण गंगा’ निकली, जिसे अभी गोदावरी के नाम से जाना जाता है। यह वही गोदावरी है जिसे प्राचीन काल में गौतमी नदी के नाम से जाना जाता था। कुंभ का मेला देश में जिन 4 जगहों पर लगता है, उनमें से एक नासिक और त्र्यंबक का क्षेत्र है। महाराष्ट्र के नासिक जिले के पास ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां स्थित शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। इस गौतम ऋषि की तपोस्थली भी कहा जाता है।
त्र्यंबकेश्वर की विशेषताएं
त्रिमूर्ति का वास: यहां के शिवलिंग में ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन) और महेश (संहार) तीनों का वास है, जो इसे अत्यंत शक्तिशाली बनाता है।
कालसर्प दोष निवारण: यह कालसर्प दोष पूजा के लिए सबसे प्रमुख और पवित्र स्थान माना जाता है, जिससे इस दोष के प्रभाव को स्थायी रूप से कम किया जा सकता है।
पितृ दोष मुक्ति: पितृ दोष और पूर्वजों के श्राप से मुक्ति के लिए यहाँ 'त्रिपिंडी श्राद्ध' और 'नारायण नागबली' जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं, जो दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करते हैं।
गौतमी और गंगा: ब्रह्मगिरी पर्वत से गोदावरी (गौतमी) नदी का उद्गम होता है, और यहाँ गंगा की धारा का संगम भी माना जाता है, जिससे यह स्थान और भी पवित्र हो जाता है।
विशेष पूजाएं और उनका महत्व
कालसर्प पूजा: कुंडली में राहु और केतु के अशुभ योग (कालसर्प दोष) से पीड़ित लोग यहां पूजा कराते हैं, जिससे जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध (पितृ दोष): यह पूजा उन पितरों (पूर्वजों) के लिए की जाती है जिनकी आत्मा भटक रही हो, जिससे उन्हें शांति और मुक्ति मिलती है, और परिवार पर पितृ दोष का प्रभाव समाप्त होता है।