एक ऐसा मंदिर जिसकी सीढ़ियों से उत्पन्न होता है संगीत, जानें चोल साम्राज्य की द्रविड़ वास्तुकला वाले इस मंदिर का नाम
नई दिल्ली। ऐरावतेश्वर मंदिर, जिसे दारासुरम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु के कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित एक 12वीं शताब्दी का शिव मंदिर है। यह मंदिर अपनी द्रविड़ वास्तुकला, रहस्यमय संगीत उत्पन्न करने वाली सीढ़ियों और विशाल पत्थर के रथ के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर चोल राजा राजराजा द्वितीय द्वारा बनवाया गया था और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।
कैसे पड़ा ऐरावतेश्वर नाम
इस मंदिर में भगवान शिव को ऐरावतेश्वर के नाम से भी पूजा जाता है, क्योंकि ऐसा मानते हैं कि यहां इंद्र देव के सफेद हाथी ऐरावत ने महादेव की पूजा की थी। हाथी के नाम पर ही इस मंदिर का नाम ऐरावतेश्वर रखा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्र का सफेद हाथी ऐरावत, ऋषि दुर्वासा के शाप से रंग खो चुका था। उसने मंदिर के पवित्र जल में स्नान कर और शिव की पूजा कर अपना रंग वापस पाया।
मंदिर की आकर्षक कला और वास्तुकला
भगवान शिव का ये मंदिर कला और वास्तुकला से घिरा हुआ है, जहां आपको शानदार पत्थर की नक्काशी देखने को मिल जाएगी। माना जाता है कि मंदिर को द्रविड़ शैली में भी बनाया गया था। प्राचीन मंदिर में आपको रथ की संरचना भी दिख जाएगी और वैदिक और पौराणिक देवता जैसे इंद्र, अग्नि, वरुण, वायु, ब्रह्मा, सूर्य, विष्णु, सप्तमत्रिक, दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गंगा, यमुना जैसे भगवान यहां शामिल हैं। समय के साथ आपको मंदिर के कई हिस्से टूटे हुए दिखाई देंगे। बाकि कुछ हिस्से आज भी उसी मजबूती के साथ खड़े हैं।
संगीत उत्पन्न करने वाली सीढ़ियां
एक खास चीज जो इस मंदिर को बेहद दिलचस्प और एकदम खास बनाती है, वो यहां की सीढ़ियां। मंदिर के प्रवेश द्वार पर बनी सात सीढ़ियां, हर कदम पर अलग-अलग ध्वनि उत्पन्न करती हैं, जो "सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि" स्वर के समान हैं। ऐरावतेश्वर मंदिर भारतीय कला और वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो इतिहास, पौराणिक कथाओं और वास्तुकला में रुचि रखने वालों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है।