इस्तीफे के बाद पहले भाषण में बोले जगदीप धनखड़: "नैरेटिव के चक्रव्यूह में मत फंसना", ठहाकों से गूंजा सभागार
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित रविंद्र भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ का विमोचन किया।;
उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को अपना पहला सार्वजनिक संबोधन किया, जिसमें उन्होंने लोगों को नैरेटिव के जाल में न फंसने की सलाह दी। यह कार्यक्रम मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के रविंद्र भवन में आयोजित किया गया था, जहां उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ का विमोचन किया। इस दौरान उन्होंने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस पुस्तक में इतनी गहराई है कि यह सोए हुए मन को भी जगा सकती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस पुस्तक को दो बार पढ़ा है और हर बार पढ़ने पर दृष्टिकोण में बदलाव महसूस हुआ।
अपने संबोधन के दौरान धनखड़ ने एक गंभीर मुद्दा उठाते हुए कहा कि आज के समय में नैरेटिव यानी किसी गढ़ी हुई सोच में फंसना बहुत बड़ा खतरा है। उन्होंने इस स्थिति को चक्रव्यूह बताते हुए कहा कि एक बार कोई इसमें फंस जाए तो उससे बाहर निकलना बेहद कठिन हो जाता है। उनके शब्द थे, “भगवान करे कोई नैरेटिव के चक्र में न फंसे, क्योंकि इस चक्रव्यूह से निकलना बहुत मुश्किल है।” यह बात कहते हुए वह मुस्कुराए और तुरंत जोड़ दिया, “मैं अपना उदाहरण नहीं दे रहा हूं।” उनकी इस टिप्पणी पर सभागार में मौजूद लोगों में हंसी और तालियों की गूंज सुनाई दी।
धनखड़ का भाषण गंभीर मुद्दों और हास्य भाव के बीच संतुलित रहा। उन्होंने कहा कि समाज और देश के भविष्य के लिए किताबें पढ़ना, सोचना और सही जानकारी पाना बेहद जरूरी है। राजनीतिक घटनाओं और सोशल मीडिया के दौर में लोगों को सावधान रहने की जरूरत है ताकि वे भ्रम और गढ़ी हुई कथाओं का हिस्सा न बनें। उन्होंने उपस्थित लोगों को यह संदेश भी दिया कि विचारशीलता और जागरूकता ही समाज को आगे बढ़ा सकती है।