बाबर के पक्षधर को बाबर ही समझा जाएगा, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने विधायक हुमायूं कबीर को दी हिदायत!

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि सभी धर्म को अपनी आस्था के अनुसार उपासना का अधिकार है और इस पर किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए।;

Update: 2025-12-05 07:12 GMT

हरिद्वार। हरिद्वार में शंकराचार्य परंपरा के संत कहे जाने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने TMC के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर के ‘बाबरी मस्जिद’ बनाने वाली बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बाबर एक क्रुर और आक्रमणकारी शासक था। उसके नाम पर मस्जिद का निर्माण किया गया है, तो ऐसी ही प्रतिक्रिया आएगी। स्वामी ने कहा कि बाबर ने जो किया है उससे वह आहत हैं। आज के समय में जो भी खुद की तुलना बाबर से करेंगे, उनको वैसी नजरों से देखा जाएगा।

बाबर से खुद की तुलना करने वाला बाबर ही समझा जाएगा

शंकराचार्य ने कहा कि ऐतिहासिक आक्रमणों से जुड़े घाव अब भी लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचाते हैं। जानकारी के अनुसार, उन्होंने स्पष्ट किया कि बाबर ने भारत पर हमला किया। बाबर ने जिस तरह के अत्याचार किए, वे आज भी पीड़ा देते हैं। स्वामी के मुताबिक, अगर वर्तमान समय में कोई व्यक्ति खुद को बाबर की विचारधारा से जोड़ता है, तो उसे भी बाबर जैसा ही माना जाएगा। उन्होंने कहा कि जो बाबर का साथा देगा, हम उसे बाबर ही समझेंगे। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि आज की तारीख में बाबर के साथ जैसा व्यवहार होता, वैसा ही उस इंसान के साथ भी किया जाएगा।

सभी धर्म को अपनी आस्था के अनुसार उपासना का अधिकार है

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह भी स्पष्ट किया कि मस्जिद निर्माण या किसी भी धर्म की पूजा-पद्धति से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी धर्म को अपनी आस्था के अनुसार उपासना का अधिकार है और इस पर किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए। समस्या तब आती है जब धार्मिक संरचना को उस इतिहास से जोड़ा जाता है जिसने देश की स्मृतियों में दर्द भरा है। उन्होंने कहा कि मस्जिद बनाना अलग बात है, लेकिन उसका नाम बाबर पर रखना पूरी तरह अलग और संवेदनशील मुद्दा है।

गौरतलब है कि स्वामी ने यह टिप्पणी तब दी है, जब हुमायूं कबीर ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में ‘बाबरी मस्जिद’ बनाने की बात कही थी। इस बयान पर विवाद बढ़ते ही TMC ने कबीर को तत्काल निलंबित कर दिया था। स्वामी ने कहा कि भारत में सद्भाव, आस्था और धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान होना चाहिए, लेकिन उकसाने वाले नामों और प्रतीकों से बचना आवश्यक है।

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