CJI BR Gavai: न्यायमूर्ति बी. आर. गवई बने भारत के पहले बौद्ध CJI! राष्ट्रपति मुर्मू ने दिलाई शपथ, जानें कितना होगा कार्यकाल
जस्टिस गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली, जो बीते दिन ही सेवानिवृत्त हुए थे।;
नई दिल्ली। न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) का पद संभाल लिया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ ग्रहण कराई। जस्टिस गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली। गवई भारत के पहले बौद्ध सीजेआई बने हैं।
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई बने नए CJI
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) का पद संभाला है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नए CJI को शपथ ग्रहण दिलाई। जस्टिस गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली, जो बीते दिन ही सेवानिवृत्त हुए थे। इससे पहले बीते माह की 30 तारीख को कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई की भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। 16 अप्रैल को सीजेआई खन्ना ने केंद्र सरकार से उनके नाम की सिफारिश की थी। वह 23 दिसंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
भारत के पहले बौद्ध CJI
बता दें कि जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध सीजेआई हैं। साथ ही आजादी के बाद वह देश में दलित समुदाय से दूसरे CJI हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर उनका कार्यकाल छह महीने का होगा।
महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था गवई का जन्म
नए CJI गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकालत शुरू की। शुरुआती सालों में उन्होंने बार. राजा एस. भोसले (पूर्व महाधिवक्ता एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश) के साथ 1987 तक कार्य किया। इसके बाद 1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की।
कई अहम फैसलों का हिस्सा थे गवई
- आर्टिकल 370 हटाए जाने वाले फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की जिन पांच मेंबर वाली संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही थी, उनमें जस्टिस गवई भी थे।
- नोटबंदी के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई करने वाले बेंच में भी वो शामिल थे।
- मोदी सरनेम केस में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राहत दी थी। उन्हें इस केस में दो साल की सजा के बाद लोकसभा से अयोग्य करार दिया गया था।
- दिल्ली शराब घोटाले में दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत दी।
- 2024 में, जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि केवल आरोपी या दोषी होने के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना असंवैधानिक है।