'अगर एयर फोर्स में एक महिला राफेल उड़ा सकती है, तो आर्मी में JAG के पद पर नियुक्ति करने में क्या दिक्कत है?' ... सुप्रीम कोर्ट ने दागा केंद्र सरकार पर सवाल
JAG के पद जेंडर न्यूट्रल हैं और 2023 से 50:50 का अनुपात रखने के सरकार के तर्क से अदालत सहमत नहीं थी।;
नई दिल्ली। आज के समय में हर क्षेत्र में महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक सवाल किया है, जो काफी ज्यादा सुर्खियों में आ गया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल करते हुए पूछा है कि यदि भारतीय वायुसेना में (IAF) में एक महिला राफेल लड़ाकू विमान उड़ा सकती है तो सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) ब्रांच के जेंडर-न्यूट्रल पदों पर कम अधिकारी क्यों हैं? जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें दोनों महिला अधिकारियों ने पुरुषों और महिलाओं के लिए असमानुपातिक रिक्तियों को चुनौती दी थी।
क्या बोली सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की है। बेंच ने कहा 'अगर एयर फोर्स में एक महिला राफेल उड़ा सकती है, तो आर्मी में JAG के पद पर नियुक्ति करने में क्या दिक्कत है?' कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जब वो कहती है कि JAG के पद जेंडर न्यूट्रल हैं, तो महिलाओं के लिए कम पद क्यों रखे जाते हैं। यह याचिका अर्शनूर कौर और एक अन्य महिला ने दायर की थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने परीक्षा में चौथा और पांचवां स्थान हासिल किया। वे पुरुष उम्मीदवारों से ज्यादा नंबर लाईं, लेकिन महिलाओं के लिए कम वेकेंसी होने के कारण उनका चयन नहीं हो सका।
क्या है पूरा मामला
अर्शनूर कौर और आस्था त्यागी ने याचिका में कहा कि उन्होंने जेएजी शाखा की मेरिट सूची में क्रमशः चौथा और पांचवां स्थान हासिल किया, लेकिन उनके चयन नहीं हो सका क्योंकि कुल 6 पदों में से केवल 3 पद महिलाओं के लिए आरक्षित थे। बाकी 3 पद पुरुषों के लिए निर्धारित थे। इस असमान प्रणाली के चलते कम रैंक वाले पुरुष उम्मीदवार चयनित हो गये। जबकि ज्यादा योग्य महिला उम्मीदवार बाहर रह गयी।
अर्शनूर कौर को अंतरिम राहत
बता दें कि कोर्ट ने अर्शनूर कौर को अंतरिम राहत दी। साथ ही कोर्ट ने सरकार और सेना को निर्देश दिया कि उन्हें JAG अधिकारी के रूप में नियुक्ति के लिए अगले उपलब्ध ट्रेनिंग कोर्स में शामिल किया जाए।
अदालत सरकार के तर्क से असहमत
JAG के पद जेंडर न्यूट्रल हैं और 2023 से 50:50 का अनुपात रखने के सरकार के तर्क से अदालत सहमत नहीं थी। कोर्ट ने कहा, 'जेंडर न्यूट्रैलिटी का मतलब 50:50 प्रतिशत नहीं है। जेंडर न्यूट्रैलिटी का मतलब है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस जेंडर से हैं।'