इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जामिया उर्दू की डिग्रियों पर सुनाया कड़ा फैसला, डिग्रीधारकों के लिए खड़ी हुई मुसीबत

जांच में सामने आया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने एक साल के अदीब-ए-कामिल कोर्स को एक साल से कम समय में पूरा किया, जबकि कुछ ने इंटरमीडिएट परीक्षा के साल में ही यह डिग्री हासिल कर ली।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-05-27 19:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अलीगढ़ स्थित जामिया उर्दू संस्था की ओर से दी गई डिग्रियां वैध नहीं हैं और इन डिग्रियों के आधार पर उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में उर्दू सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं बनता।

यह आदेश अज़हर अली और अन्य की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्होंने जामिया उर्दू, अलीगढ़ से अदीब-ए-कामिल डिग्री प्राप्त की है और वे प्राथमिक स्कूलों में उर्दू भाषा के शिक्षक पद के लिए पात्र हैं। उन्होंने 2013 की शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) भी पास की थी और मेरिट लिस्ट में उनके नाम आए थे। कुछ को नियुक्ति मिल गई थी जबकि बाकी इंतजार कर रहे थे।

जांच में सामने आया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने एक साल के अदीब-ए-कामिल कोर्स को एक साल से कम समय में पूरा किया, जबकि कुछ ने इंटरमीडिएट परीक्षा के साल में ही यह डिग्री हासिल कर ली। कोर्ट ने यह भी देखा कि एक याचिकाकर्ता ने जुलाई 1995 में अदीब-ए-कामिल में दाखिला लिया और पांच महीने बाद नवंबर 1995 में परीक्षा देकर जुलाई 1996 में परिणाम भी प्राप्त कर लिया, जो सामान्य प्रक्रिया के अनुसार संभव नहीं है।

उत्तरदाताओं की ओर से यह दलील दी गई कि जामिया उर्दू न तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से मान्यता प्राप्त है, न ही वहां नियमित कक्षाएं चलती हैं। संस्थान केवल डिग्री बांटता है, जिससे डिग्रियां संदेहास्पद मानी जानी चाहिएं।

कोर्ट ने 17 मई को दिए फैसले में कहा कि जामिया उर्दू ने डिग्रियां गलत तरीके से बांटी हैं और इस आधार पर याचिकाकर्ता सहायक शिक्षक (उर्दू) पद के लिए पात्र नहीं माने जा सकते।

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