बुरी नजर से बचाता है कीर्तिमुख! एक ऐसा दानव जिसने शिवजी के आदेश पर अपना ही शरीर खा लिया था, जानें क्या है कथा

Update: 2025-11-08 02:30 GMT

नई दिल्ली। लोग अपने घर के बाहर एक भयानक सा दिखने वाला चेहरा लगाते हैं। जिसे बुरी नजर से बचाव के लिए लगाया जाता है। ये चेहरा कीर्तिमुख नामक राक्षस का है जिसे बुरी नजर से बचाने का वरदान प्राप्त हुआ था। कहते हैं इस राक्षस का चेहरा घर के बाहर लटकाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर पाती क्योंकि ये नेगेटिव एनर्जी को पहले ही निगल लेता है। दानव कीर्तिमुख के बुरी नजर से बचाने वाले देवता बनने की कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं, विशेषकर शिव पुराण और स्कंद पुराण से जुड़ी है। यह कहानी अहंकार के विनाश और सुरक्षा के प्रतीक को दर्शाती है।

कीर्तिमुख की कथा और शिव जी से संबंध

पौराणिक कथा के अनुसार, जलंधर नामक एक शक्तिशाली असुर राजा था, जिसने अपनी तपस्या के बल पर अपार शक्तियां प्राप्त कर ली थीं। अहंकार में आकर, उसने अपने दूत, राहु (एक अन्य दानव) को भगवान शिव के पास यह संदेश देने के लिए भेजा कि शिव अपनी पत्नी देवी पार्वती को उसे सौंप दें। इस अपमानजनक मांग से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके तीसरे नेत्र से एक भयंकर, विशाल और भूखा शेर जैसा प्राणी उत्पन्न हुआ, जिसका एकमात्र उद्देश्य राहु को खा जाना था। उस भयंकर प्राणी को देखकर राहु भयभीत हो गया और तुरंत शिवजी से दया की भीख मांगी। हिंदू धर्म में यह नियम है कि जो एक बार भगवान की शरण में आ जाता है, भगवान उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए, शिवजी ने राहु को माफ कर दिया। अब समस्या यह थी कि शिवजी द्वारा बनाए गए उस प्राणी की भूख बहुत तीव्र थी, और राहु को जीवनदान मिल चुका था। तब शिवजी ने उस प्राणी से कहा कि वह अपनी भूख शांत करने के लिए स्वयं अपने शरीर को खाए।

कीर्तिमुख नाम और वरदान

प्राणी ने आज्ञा का पालन किया और अपने पैरों से शुरू करके पूरा शरीर खा लिया। अंत में केवल उसका भयानक सिर (चेहरा) और ऊपरी जबड़ा ही बचा रह गया। उसकी इस आज्ञाकारिता और त्याग से प्रसन्न होकर, शिवजी ने उसे "कीर्तिमुख" (अर्थात "महिमा का मुख") नाम दिया और उसे यह वरदान दिया कि उसकी छवि हमेशा शिव मंदिरों के प्रवेश द्वार पर एक रक्षक के रूप में मौजूद रहेगी।

बुरी नजर से बचाने वाला देवता

इस प्रकार, एक दानव से उत्पन्न प्राणी, जिसने अहंकार और भूख पर विजय पाकर स्वयं का बलिदान दिया, भगवान शिव का प्रिय गण बन गया।

प्रतीकात्मक महत्व: कीर्तिमुख को मंदिर के द्वारों पर या घरों के मुख्य द्वार के ऊपर स्थापित किया जाता है ताकि वह बुरी आत्माओं, नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी नजर से रक्षा कर सके। इसका भयंकर चेहरा एक सुरक्षात्मक ढाल के रूप में कार्य करता है, जो नकारात्मक शक्तियों को पवित्र स्थान या घर में प्रवेश करने से रोकता है।

संक्षेप में, कीर्तिमुख की कहानी अहंकार के विनाश और दैवीय सुरक्षा के दर्शन को दर्शाती है, और यह बुरी नजर से बचाने वाले एक शक्तिशाली रक्षक प्रतीक के रूप में स्थापित हो गया।

कृतिमुख ऐसे बन गया देवता

बताया जाता है कि भगवान से वरदान पा लेने के बाद कीर्तिमुख का चेहरा शुभता, सुरक्षा और सकारात्मकता का प्रतीक बन गया। तभी से ऐसी मान्यता है कि जिस घर या दुकानों के बाहर कीर्तिमुख का चेहरा लटका होता है, वहां किसी भी नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं हो पाता। ये हर तरह की नकारात्मक शक्ति और उर्जा को खा जाता है।

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