फिर भारत का हिस्सा बन सकता है सिंध, राजनाथ सिंह बोले- बदल सकता है बॉर्डर

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सिंध फिर से भारत का हिस्सा बन सकता है। 1947 के बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए सिंध क्षेत्र की सांस्कृतिक जुड़ाव पर चर्चा। आडवाणी जी की किताब का जिक्र करते हुए सीमाओं के बदलाव की संभावना जताई।;

By :  DeskNoida
Update: 2025-11-23 16:20 GMT

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक हालिया कार्यक्रम में एक ऐसा बयान दिया है, जिसने राजनीतिक और सामरिक हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में चला गया सिंध प्रांत फिर से भारत का अभिन्न अंग बन सकता है। सिंह ने कहा कि सीमाएं बदल सकती हैं और सिंध का यह क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से हमेशा भारत से जुड़ा रहा है। यह बयान न केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों पर नई बहस छेड़ सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता है।

कार्यक्रम के दौरान राजनाथ सिंह ने सिंधु नदी के पवित्र महत्व पर जोर देते हुए कहा, "सिंध क्षेत्र आज भारत का हिस्सा नहीं है, लेकिन हो सकता है कि सीमाएं बदल जाएं और यह क्षेत्र फिर से भारत का हिस्सा बन जाए।" उन्होंने 1947 के बंटवारे का जिक्र करते हुए बताया कि सिंधु नदी के किनारे बसा यह प्रांत पाकिस्तान चला गया था, जिसके बाद वहां के लाखों सिंधी हिंदू भारत आकर बस गए। सिंह ने भावुक लहजे में कहा, "सिंधी हिंदुओं, खासतौर पर लालकृष्ण आडवाणी जी की पीढ़ी के लोगों ने आज तक भारत से सिंध के अलगाव को स्वीकार नहीं किया है। आडवाणी जी ने अपनी किताब में भी इस दर्द को बयां किया है।"

रक्षामंत्री ने सिंधु नदी के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि पूरे भारत में हिंदू इस नदी को पवित्र मानते हैं। यहां तक कि सिंध के कई मुसलमान भी मानते हैं कि सिंधु का पानी मक्का के आब-ए-जमजम से कम पवित्र नहीं है। "यह बातें आडवाणी जी की किताब से ली गई हैं," सिंह ने जोड़ा। उन्होंने आगे कहा, "आज भले ही सिंध भारत का हिस्सा नहीं है, लेकिन सभ्यतात्मक रूप से सिंध हमेशा भारत का हिस्सा रहेगा। जहां तक जमीन का सवाल है, सीमाएं बदल सकती हैं। कौन जाने, कल सिंध फिर से भारत में शामिल हो जाए।"

यह बयान राजनाथ सिंह के पिछले बयानों से भी जुड़ता है। इससे पहले 22 सितंबर को मोरक्को में भारतीय समुदाय के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर टिप्पणी की थी। सिंह ने कहा था, "मुझे विश्वास है कि भारत बिना किसी आक्रामक कदम उठाए पीओके वापस पा सकता है, क्योंकि वहां के लोग कब्जा करने वालों से स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं। पीओके अपने आप हमारा होगा।" उन्होंने नारेबाजी का जिक्र करते हुए कहा था कि पीओके में स्वतंत्रता की मांगें तेज हो रही हैं। अब सिंध पर यह नया बयान आया है, जो भारत की सीमा नीति पर नई बहस छेड़ सकता है।

इतिहासकारों और विशेषज्ञों का मानना है कि सिंध का भारत से गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव रहा है। सिंध प्रांत, जो आज पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, प्राचीन सभ्यताओं का केंद्र रहा है। मोहनजो-दारो जैसी हड़प्पा सभ्यता की खुदाई यहीं हुई थी, जो भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन विरासत का प्रतीक है। 1947 के बंटवारे में सिंध मुस्लिम बहुल होने के कारण पाकिस्तान को मिला, लेकिन लाखों सिंधी हिंदू भारत आ गए। आज भारत में सिंधी समुदाय मजबूत है, जो अपनी जड़ों से जुड़े रहने का प्रयास करता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, जो खुद सिंधी मूल के हैं, ने अपनी आत्मकथा "माई कंट्री माई लाइफ" में सिंध से अलगाव के दर्द को विस्तार से वर्णित किया है।

राजनाथ सिंह का यह बयान राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। वर्तमान में भारत-पाकिस्तान संबंध तनावपूर्ण हैं, खासकर कश्मीर मुद्दे और आतंकवाद के कारण। सिंध पर यह टिप्पणी पाकिस्तान को असहज कर सकती है, जहां सिंध राष्ट्रवादी आंदोलन पहले से सक्रिय हैं। सिंध में अलगाववादी गुट पाकिस्तान सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं, और वे सिंध की स्वायत्तता या यहां तक कि भारत से जुड़ाव की बातें करते हैं। हालांकि, सिंह ने साफ किया कि यह सांस्कृतिक जुड़ाव की बात है, न कि सैन्य कार्रवाई की। "हमारे सिंध के लोग, जो सिंधु नदी को पवित्र मानते हैं, हमेशा हमारे अपने रहेंगे। चाहे वे कहीं भी रहें, वे हमेशा हमारे होंगे," उन्होंने कहा।

इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कई यूजर्स इसे भावनात्मक अपील मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे भारत की विस्तारवादी नीति का संकेत बता रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी टिप्पणियां सीमा पर शांति के लिए हानिकारक हो सकती हैं, लेकिन वे सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने का माध्यम भी हैं। भारत सरकार ने अभी तक इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह निश्चित है कि यह दक्षिण एशिया की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है।

सिंध का मुद्दा केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि समकालीन भी है। पाकिस्तान में सिंध प्रांत आर्थिक रूप से पिछड़ा है, और वहां जल संकट तथा बाढ़ जैसी समस्याएं आम हैं। सिंधु नदी पर भारत-पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे का विवाद भी चल रहा है। राजनाथ सिंह का बयान इन मुद्दों को नई रोशनी में देखने का अवसर देता है। क्या सिंध वाकई सीमाओं के पार जुड़ाव का प्रतीक बनेगा? समय ही बताएगा। फिलहाल, यह बयान भारतीय राजनीति में एक नई चर्चा का विषय बन चुका है।

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