फौलादी इरादें, दिल मजबूत, कैसे मिला भारत को लौह पुरुष! जानें कहानी उस सच्चे देशभक्त की जिन्होंने भारत को अखंड बनाया
सरदार पटेल को 'लौह पुरुष' उनके अडिग और दृढ़ संकल्प, मजबूत नेतृत्व, और स्वतंत्र भारत के एकीकरण में निभाई गई असाधारण भूमिका के कारण कहा जाता है।;
नई दिल्ली। सरदार वल्लभभाई पटेल एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे। उन्हें भारत के "लौह पुरुष" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने 562 से अधिक रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जन्म: उनका जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद गांव में एक किसान परिवार में हुआ था।
शिक्षा: उन्होंने इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई पूरी की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे।
राजनीतिक जीवन: वे महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। खेड़ा संघर्ष में उनके अहम योगदान के बाद उन्हें 'सरदार' की उपाधि मिली।
शिक्षा और शुरुआती संघर्ष
उनके पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, और उन्होंने 22 साल की उम्र में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की, लेकिन उन्होंने कभी संघर्ष को अपने लक्ष्य से भटकने नहीं दिया। उन्होंने नडियाद में एक शिक्षक को मुनाफाखोरी से रोकने के लिए चेतावनी देने जैसे किस्से उनकी ईमानदारी और साहस को दर्शाते हैं।
पत्नी के निधन के बाद नही की दोबारा शादी
सरदार पटेल ने अपनी 16 साल की उम्र में झावेरबेन पटेल से विवाह किया था। उनका विवाह 1909 में 29 साल की उम्र में हुआ जब उनके दो बच्चे थे, लेकिन उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद सरदार पटेल ने फिर कभी शादी नहीं की और अपने बच्चों, मणिबेन और डाह्याभाई की परवरिश पर ध्यान केंद्रित किया।
1. गर्म लोहे की छड़ से फोड़े का इलाज
बचपन में सरदार पटेल की बगल में एक दर्दनाक फोड़ा हो गया था। जब स्थानीय नाई (चिकित्सक) ने इसे गर्म लोहे की छड़ से ठीक करने से मना कर दिया, तो युवा वल्लभभाई ने बिना किसी हिचकिचाहट के जलती हुई छड़ ली और अपने फोड़े को स्वयं दाग दिया। इस घटना से उनके असाधारण साहस और दर्द सहन करने की क्षमता का पता चलता है, जिसने उन्हें बाद में "लौह पुरुष" की उपाधि दी।
2. एक शिक्षक को सबक
अपने स्कूल के दिनों में, उन्होंने पाया कि एक शिक्षक पाठ्यपुस्तकों और पेंसिल की बिक्री में कालाबाजारी कर रहा था। वल्लभभाई ने उस शिक्षक को मुनाफाखोरी छोड़ने की चेतावनी दी और उसके खिलाफ छात्रों को लामबंद किया। यह घटना उनके बचपन से ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के स्वभाव को दर्शाती है। ये किस्से सरदार पटेल के मजबूत, अडिग और दूरदर्शी व्यक्तित्व की झलक देते हैं, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
3. 'लौह पुरुष'की उपाधि
सरदार पटेल को 'लौह पुरुष' उनके अडिग और दृढ़ संकल्प, मजबूत नेतृत्व, और स्वतंत्र भारत के एकीकरण में निभाई गई असाधारण भूमिका के कारण कहा जाता है। उन्होंने 562 रियासतों को बिना रक्तपात के सफलतापूर्वक भारत में एकीकृत किया और देश के सामरिक और राजनीतिक एकीकरण को सुनिश्चित किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी मजबूत पकड़ और व्यावहारिक दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया।
4. वकील के रूप में कर्तव्यनिष्ठा
जब वे एक सफल बैरिस्टर के रूप में काम कर रहे थे, तब एक बार अदालत में जिरह के दौरान उन्हें एक टेलीग्राम मिला जिसमें उनकी पत्नी के निधन की खबर थी। उन्होंने टेलीग्राम पढ़ा, उसे अपनी जेब में रखा और अपना काम जारी रखा। कर्तव्य के प्रति उनकी इस अटूट निष्ठा और समर्पण ने सभी को स्तब्ध कर दिया।
5. "सरदार" की उपाधि और बारडोली सत्याग्रह
1928 में बारडोली में किसानों पर ब्रिटिश सरकार ने भारी कर (लगान) लगा दिया था। वल्लभभाई पटेल ने किसानों को अहिंसक आंदोलन के लिए एकजुट किया और सफलतापूर्वक सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को झुकना पड़ा और कर वापस लेना पड़ा। इस सफल नेतृत्व और जनता से जुड़ने की क्षमता के कारण, वहाँ की महिलाओं ने उन्हें "सरदार" (नेता) की उपाधि दी।
6. 562 रियासतों का एकीकरण
आजादी के बाद, भारत सैकड़ों छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। इन सभी को एक राष्ट्र में एकजुट करना एक विशाल और लगभग असंभव कार्य था। सरदार पटेल ने अपनी कूटनीति, दृढ़ इच्छाशक्ति और लौह-संकल्प से लगभग 562 रियासतों को भारतीय संघ में मिलाया। हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी कुछ रियासतों के खिलाफ उन्होंने सख्त कदम उठाए, जिससे भारत का मौजूदा एकीकृत नक्शा संभव हो पाया।
पीएम पद के लिए पार्टी की पहली पंसद थे पटेल
बात है 1946 की जब अंतरिम सरकार के प्रमुख (जो बाद में प्रधानमंत्री बने) के चुनाव का समय आया, तो महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को इस पद के लिए अपनी प्राथमिकता दी। अधिकांश प्रांतीय कांग्रेस समितियों (PCC) ने प्रधानमंत्री पद के लिए सरदार पटेल का समर्थन किया था (15 में से 12 समितियों ने पटेल को नामांकित किया था, जबकि नेहरू को एक भी नामांकन नहीं मिला था)। हालांकि, गांधीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए और कांग्रेस पार्टी में विभाजन से बचने के लिए, सरदार पटेल ने अपना नाम वापस ले लिया और नेहरू के लिए रास्ता साफ कर दिया।
गांधीजी का मानना था कि नेहरू का अंतरराष्ट्रीय मामलों का ज्ञान, आधुनिक दृष्टिकोण और करिश्मा भारत जैसे नए स्वतंत्र देश का नेतृत्व करने के लिए बेहतर था, खासकर विश्व मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गांधीजी को यह डर था कि यदि नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया, तो वह पार्टी से अलग हो सकते हैं, जिससे कांग्रेस में विभाजन हो जाता। पटेल ने पार्टी की एकता बनाए रखने के लिए उप-प्रधानमंत्री का पद स्वीकार कर लिया।
Sardar Patel को समर्पित Statue Of Unity
7 अक्टूबर 2010 को भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जो जी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे उन्होंने एक press conference में Statue Of Unity के निर्माण की घोषणा करी थी। तब इस project के निर्माण के लिए गुजरात सरकार ने “सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ” बनाया। इस कार्य को आगे बढ़ने के लिए स्टेचू ऑफ़ यूनिटी मूवमेंट चलाया गया जिसकी मदद से मूर्ति के निर्माण के लिए लोहा एकत्र किया गया। इस लोहे को एकत्र करने के लिए किसानो को उनके पुराने लोहे के औज़ार देने के लिए निवेदन किया गया। अतः 2016 तक लगभग 135 metric tonne इस्तेमाल किया गया लोहा एकत्र हुआ और उसमे से लगभग 109 tonne मूर्ति के निर्माण प्रयोग किया गया। इस project के समर्थन में 15 दिसंबर 2013 को सूरत में Run for Unity का आयोजन किया गया।
जानें Design और Funding
देश इतिहासकार , मूर्तिकार और कलाकार सभी ने मिलकर सरदार पटेल के अलग अलग मूर्तियों को अध्यन करने के बाद इन सभी ने देश के जाने माने मूर्तिकार श्री राम वानजी सुथार के बनाये हुए design को मंजूरी दी। इस प्रोजेक्ट का निर्माण निजी और सरकारी साझेदारी हुआ। इस प्रोजेक्ट में अधिकांश पैसा गुजरात सरकार में लगाया, गुजरात सरकार ने Rs. 6 billion का बजट 2012 -2015 के बीच इस प्रोजेक्ट में लगाया और 2015 -16 के केन्द्रीय बजट में इसके लिए Rs. 2 billion दिए गए।
Statue Of यूनिटी से दिखी सरदार पटेल की झलक
- Statue Of Unity की हाइट 182 मीटर है और इसका निर्माण लगभग 3 साल और 6 महीने में हुआ जो की दुनिया के दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति The Spring Buddha के बनने के समय से लगभग आधी है और Statue Of Liberty के निर्माण समय से लगभग 4 साल कम है।
- इसके निर्माण के बाद ये लगभग 15000 आदिवासी लोगो सीधा रोज़गार देगी।
-ये मूर्ति 60 मीटर प्रति सेकंड के वायु आवेग को और भूकंप को भी सहन कर सकती है।
- एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दिसम्बर 2018 में स्टेचू ऑफ़ यूनिटी को देखने के लगभग 2.97 लाख लोग आए और Rs. 6.38 करोड़ की कमाई हुई।