पीएम मोदी को तेजस्वी यादव ने लिखा पत्र, सरकार के जातीय जनगणना कराने के फैसले पर बढ़ा सियासी बवाल, जानें क्या कहा
तेजस्वी ने मोदी सरकार से जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने की मांग की;
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है। सरकार के इस फैसले का विपक्ष ने स्वागत किया है। वहीं इसको लेकर दिल्ली से लेकर बिहार तक सियासत घमासान भी मचा है। इस बीच राजद नेता तेजस्वी यादव ने पीएम नरेंद्र मोदी को जातीय जनगणना को लेकर एक पत्र लिखा है।
निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की
बता दें कि इस पत्र में तेजस्वी ने पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के लिए विधायिका और संसद में उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की मांग की है। इसके साथ ही सरकार की घोषणा पर संदेह जताया और आरक्षण नीतियों की समीक्षा और परिसीमन आयोग द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की मांग की है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार के जाति सर्वेक्षण को पहले 'विभाजनकारी और अनावश्यक' बताकर खारिज किया गया था, लेकिन अब जाति जनगणना की घोषणा की गई है। इतना ही नहीं तेजस्वी ने निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग की है।
जाति जनगणना कराने से सामाजिक न्याय नहीं मिलेगा
दरअसल, तेजस्वी यादव ने बिहार में हुई जातीय गणना पर खुद का क्रेडिट लेते हुए कहा कि बिहार में उनकी सरकार द्वारा कराए गए जाति सर्वेक्षण में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी लगभग 63 फीसदी पाई गई। जिससे कई मिथक टूटे। हालांकि इस पत्र में राजद नेता ने कहा कि इसी तरह के परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर भी सामने आ सकते हैं, जिससे सत्ता में बैठे लोगों के लिए राजनीतिक मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
वहीं उन्होंने कहा कि जाति जनगणना कराने से सामाजिक न्याय नहीं मिलेगा। इसके लिए आरक्षण नीतियों की समीक्षा और परिसीमन आयोग द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण भी जरूरी है। उन्होंने ओबीसी और ईबीसी के लिए विधायिका और संसद में उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की मांग की है।
देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रतिबिंबित करना चाहिए
राजद नेता ने इस पत्र के जरिए मोदी सरकार से जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को सार्वजनिक संसाधनों का बड़ा लाभ मिला है, इसलिए उन्हें भी देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रतिबिंबित करना चाहिए। निजी कंपनियों को रियायती दरों पर जमीन, बिजली सब्सिडी, कर छूट, बुनियादी ढांचे का समर्थन और विभिन्न वित्तीय प्रोत्साहन मिले हैं, जो करदाताओं के पैसे से वित्त पोषित हैं। ऐसे में उनसे देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रतिबिंबित करने की अपेक्षा करना बिल्कुल उचित है।