भारत के इस मंदिर में होते हैं शत्रुनाशिनी यज्ञ, पांडवों ने की थी स्‍थापना, जानें क्या है पीले रंग का महत्व

Update: 2025-12-16 02:30 GMT

 कांगड़ा। मां पीतांबरा के नाम से जानी जाने वाली बगलामुखी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बनखंडी में स्थित है. हिंदू धर्म में मां बगलामुखी का विशेष महत्व है और वे दस महाविद्याओं में शामिल है। इन्हें युद्ध की देवी भी कहा जाता है और तंत्र-मंत्र साधना के लिए इनकी पूजा होती है। मां बगलामुखी मंदिर एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली शक्तिपीठ है, जो अपने शत्रुनाशिनी यज्ञ और महाभारत काल से जुड़े इतिहास के लिए जाना जाता है।

स्थापना की कहानी

इस पूरी सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का ग्रंथ जब एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया। तब उसके वध के लिए मां बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुला का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया और ब्रह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मां का मंदिर बनाया और पूजा अर्चना की। पहले रावण और उसके बाद लंका पर जीत के लिए श्रीराम ने शत्रुनाशिनी मां बगला की पूजा की और विजय पाई। मां बगलामुखी को पीतांबरी भी कहा जाता है। इस कारण मां के वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन से लेकर हर कुछ पीला ही होता है।

शत्रुनाशिनी यज्ञ: यह मंदिर विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, कानूनी मामलों में सफलता, और जीवन से बुरी शक्तियों और बाधाओं को दूर करने के लिए किए जाने वाले विशेष यज्ञों (हवन/पूजा) के लिए जाना जाता है। यहां पर तांत्रिक अनुष्ठान भी होते हैं।

पीतांबरा देवी: मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में से आठवीं माना जाता है और इन्हें 'पीतांबरा' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पीले रंग के वस्त्र धारण करने वाली। मंदिर में सभी वस्तुएं, यहां तक कि देवी के वस्त्र और प्रसाद भी, पीले रंग के होते हैं।

प्रसिद्ध भक्तों का आगमन: मुकदमे, विवादों और घरेलू कलह से जूझ रहे लोगों के अलावा, कई बड़े राजनेता और सेलिब्रिटी भी अपनी मनोकामनाएं पूरी करने और विशेष पूजा-अर्चना के लिए इस मंदिर में आते हैं। यह मंदिर हिमाचल की धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित है और भक्तों को एक शांत व आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है।

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