नीम करौली बाबा के आश्रम का नाम कैंची धाम ही क्यों पड़ा, जानें क्या है इसका इतिहास

Update: 2025-12-28 02:30 GMT

नई दिल्ली। नीम करोली बाबा का आश्रम 'कैंची धाम' इसलिए कहलाता है क्योंकि यहां पहुंचने वाली सड़क पर कैंची (कैंची) के आकार के दो तीखे मोड़ (हेयरपिन बेंड) हैं, और यह आश्रम दो पहाड़ियों के बीच स्थित है जो कैंची जैसा रूप बनाती हैं, जो आध्यात्मिक शांति और प्रेम का केंद्र है जहाँ बाबा ने 1964 में स्थापना की और 1973 में महासमाधि ली, जिससे यह भक्तों के लिए महत्वपूर्ण स्थल बन गया है।

स्थान

यह आश्रम नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 17-18 किमी की दूरी पर स्थित है। यह दो पहाड़ों के बीच स्थित है जो ऊपर से देखने पर 'कैंची' की आकृति जैसे लगते हैं, इसीलिए इसका नाम 'कैंची धाम' पड़ा। नीम करोली बाबा ने 1960 के दशक में इस आश्रम की स्थापना की थी। यहां हनुमान जी का भव्य मंदिर और बाबा का निवास स्थान है।

क्यों खास है कैंची धाम?

कैंची धाम एक मशहूर आश्रम है, जो नीब करौली बाबा की वजह से जाना जाता है। असल में इसका नाम नीब करौरी आश्रम है, लेकिन आम बोलचाल में इसे नीम करौली बोला जाने लगा है। यह आश्रम नैनीताल से करीब 17 किलोमीटर और भवाली से 9 किलोमीटर दूर स्थित है और इसकी आश्रम को 1960 के दशक में उस दौर के जाने-माने आध्यात्मिक गुरु नीब करोली बाबा ने बनवाया था। 15 जून, 1964 को नीब करौली बाबा और उनके भक्तों से इस आश्रम को बनाया था। बाबा को महाराज जी के नाम से भी जाना जाता था और कई लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते हैं। इस मंदिर में नीब करौली बाबा के साथ-साथ हनुमान जी, राम-सीता समेत अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। वह हनुमान जी के परम भक्त थे औक उन्होंने अपनी जीवनकाल में हनुमान जी के कई मंदिरों को बनवाया था।

प्रमुख हस्तियां

एप्पल (Apple) के संस्थापक स्टीव जॉब्स और फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग जैसी हस्तियों ने यहां आकर शांति और मार्गदर्शन प्राप्त किया था। इसके अलावा विराट कोहली भी यहाँ दर्शन के लिए आ चुके हैं।

स्थापना दिवस

प्रत्येक वर्ष 15 जून को यहाँ 'स्थापना दिवस' पर एक बहुत बड़ा मेला और भंडारा आयोजित किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं। मंदिर प्रतिदिन सुबह 6:45 बजे से रात 8:00 बजे तक खुला रहता है। मुख्य आरती सुबह और शाम को 7:00 बजे होती है। बाबा को उनके भक्त हनुमान जी का अवतार मानते हैं। यहाँ बाबा को 'कंबल' चढ़ाने की विशेष परंपरा है, जो एक प्राचीन चमत्कार से जुड़ी है।

जाने का सही समय

यात्रा के लिए मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का समय सबसे सुखद रहता है।

कैंची धाम नाम का कारण

भौगोलिक संरचना: इस आश्रम तक जाने वाली पहाड़ी सड़क पर दो 'कैंची' के आकार के तीखे मोड़ हैं, जिससे यह नाम पड़ा।

पहाड़ियों का आकार: दो पहाड़ियां भी कैंची के आकार में एक-दूसरे को काटती हुई दिखती हैं, जो इस नाम का एक और कारण है। 

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