‘जी राम जी’ बिल का समर्थन करेंगे, लेकिन फंडिंग पर आपत्ति; BJP के सहयोगी TDP ने विधेयक से पहले जताई चिंता
आंध्र प्रदेश में सत्ता का हिस्सा रही और केंद्र में NDA सरकार को समर्थन दे रही TDP ने साफ कहा है कि वह नए कानून का समर्थन करेगी, लेकिन इसके वित्तीय प्रावधान राज्य सरकारों पर अतिरिक्त बोझ डाल सकते हैं।;
केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के स्थान पर एक नया कानून लाने की तैयारियों के बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रमुख सहयोगी दल तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने विधेयक को लेकर अपनी शर्तों और चिंताओं को सार्वजनिक कर दिया है। आंध्र प्रदेश में सत्ता का हिस्सा रही और केंद्र में NDA सरकार को समर्थन दे रही TDP ने साफ कहा है कि वह नए कानून का समर्थन करेगी, लेकिन इसके वित्तीय प्रावधान राज्य सरकारों पर अतिरिक्त बोझ डाल सकते हैं।
दरअसल, केंद्र सरकार ने प्रस्तावित नए कानून का नाम ‘विकसित भारत–रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)’ यानी ‘विकसित भारत–जी राम जी विधेयक, 2025’ रखा है। इस विधेयक की प्रतियां लोकसभा सदस्यों में बांट दी गई हैं और जल्द ही इसे संसद में पेश किए जाने की संभावना है। माना जा रहा है कि इस कानून के लागू होने के बाद महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को निरस्त कर दिया जाएगा।
आंध्र प्रदेश के वित्त, योजना एवं विधायी कार्य मंत्री पय्यावुला केशव ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्य सरकार विधेयक के प्रावधानों का गहराई से अध्ययन करेगी और इसके बाद समर्थन एवं कार्यान्वयन को लेकर फैसला लेगी। उन्होंने कहा कि रोजगार और आजीविका से जुड़े किसी भी सकारात्मक कदम का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन फंडिंग के नए ढांचे को लेकर गंभीर चिंताएं हैं।
पय्यावुला केशव ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “निस्संदेह, फंड का बंटवारा चिंताजनक है। अगर हमें योजना के वित्तपोषण के लिए अपने हिस्से की बड़ी राशि देनी पड़ी, तो इससे राज्य पर भारी बोझ पड़ेगा। फिलहाल हमने विधेयक के सभी प्रावधानों का विस्तृत अध्ययन नहीं किया है।” उन्होंने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश पहले से ही सीमित वित्तीय संसाधनों के साथ विकास योजनाओं को चला रहा है और ऐसे में अतिरिक्त जिम्मेदारी मुश्किलें बढ़ा सकती है।
राज्य के वित्त विभाग के अधिकारियों का भी मानना है कि नया फंडिंग मॉडल नकदी की कमी से जूझ रहे राज्यों के लिए चिंता का विषय हो सकता है। हालांकि, अधिकारियों ने यह भी स्वीकार किया कि प्रस्तावित कानून में कुछ प्रावधान उत्साहजनक हैं। इनमें एक वित्तीय वर्ष में 125 दिनों के रोजगार की गारंटी, साप्ताहिक मजदूरी भुगतान और कृषि के चरम मौसम के दौरान श्रमिकों को अवकाश जैसे प्रावधान शामिल हैं। इनसे कृषि क्षेत्र को अतिरिक्त श्रमिक उपलब्ध होने की उम्मीद जताई जा रही है।
मनरेगा के तहत अब तक मजदूरी की पूरी राशि केंद्र सरकार द्वारा वहन की जाती थी। लेकिन नए ‘विकसित भारत–जी राम जी’ विधेयक में यह व्यवस्था बदल दी गई है। विधेयक की धारा 22(2) के अनुसार, पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी राज्यों और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए फंडिंग का अनुपात 90:10 होगा, जबकि अन्य सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए यह 60:40 रहेगा। इसका मतलब है कि मजदूरों के कुल पारिश्रमिक का 40 प्रतिशत बोझ अब राज्यों को उठाना होगा, जिसे लेकर कई राज्य सरकारें असहज नजर आ रही हैं।
इस बीच, विपक्षी दल कांग्रेस ने इस प्रस्तावित कानून को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाना यह साबित करता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बापू के प्रति सम्मान केवल दिखावा है। उन्होंने इसे मनरेगा को धीरे-धीरे खत्म करने की साजिश करार दिया।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि किसी योजना का नाम बदलने से कार्यालयों, दस्तावेजों और स्टेशनरी में बदलाव करना पड़ता है, जिस पर अतिरिक्त खर्च होता है। उन्होंने पूछा कि महात्मा गांधी जैसे वैश्विक नेता का नाम हटाने का उद्देश्य क्या है और सरकार इससे क्या संदेश देना चाहती है।
कुल मिलाकर, ‘विकसित भारत–जी राम जी’ विधेयक को लेकर जहां सरकार रोजगार और आजीविका के नए मॉडल की बात कर रही है, वहीं सहयोगी दल और विपक्ष इसके वित्तीय बोझ और प्रतीकात्मक बदलावों पर सवाल उठा रहे हैं। आने वाले दिनों में संसद में इस मुद्दे पर तीखी बहस के आसार हैं।