Atal Bihari Vajpayee: मैं अटल हूं,अटल मेरा विश्वास... आजाद भारत का वो पीएम जिसने बदल कर रख दिया राजनीति का रूख, जानें कैसे थे अटल

Update: 2025-12-25 05:47 GMT

नई दिल्ली। आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती मनाई जा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनीतिज्ञ, कवि और पत्रकार थे. अटल जी राजनेता और कवि दोनों के रूप में आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। लेकिन अटल जी राजनेता और कवि के साथ-साथ राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष भी थे।

पिता के साथ की वकालत की पढ़ाई

अटल जी और उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज में एक साथ एलएलबी (LLB) की पढ़ाई की थी। वे न केवल एक ही कॉलेज में थे, बल्कि एक ही हॉस्टल रूम में साथ रहते थे, जो शिक्षा के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।

1984 की चुनावी हार (ग्वालियर किस्सा)

अटल जी अपने पूरे राजनीतिक करियर में केवल एक बार लोकसभा चुनाव हारे थे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर के बीच, कांग्रेस ने आखिरी समय में ग्वालियर से माधवराव सिंधिया को चुनावी मैदान में उतारा। बताया जाता है कि अटल जी को लगा था कि उनका मुकाबला किसी साधारण प्रत्याशी से होगा, लेकिन नामांकन के आखिरी घंटों में माधवराव सिंधिया ने पर्चा भर दिया। इस चक्रव्यूह में अटल जी फंस गए और उन्हें करीब 1.75 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का गौरव

वह पहले भारतीय नेता थे जिन्होंने 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) को हिंदी में संबोधित किया था। उस समय वह विदेश मंत्री थे और उनके इस कदम ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी भाषा को नई पहचान दिलाई।

पत्रकारिता से राजनीति का सफर

वाजपेयी जी ने अपने करियर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में की थी। उन्होंने 1940 के दशक के उत्तरार्ध में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के विभिन्न प्रकाशनों के लिए काम किया। वे लखनऊ से प्रकाशित होने वाले हिंदी मासिक 'राष्ट्रधर्म' के पहले संपादक थे (1946)। इसके अलावा उन्होंने साप्ताहिक 'पाञ्चजन्य', और दैनिक समाचार पत्रों 'स्वदेश' और 'वीर अर्जुन' का संपादन भी किया। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय वे राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हुए। उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निजी सचिव के रूप में कार्य किया। वाजपेयी जी पहली बार 1957 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से लोकसभा के लिए चुने गए। उनके भाषण कौशल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी प्रभावित किया था, जिन्होंने उनके भविष्य में प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी। 1953 में कश्मीर में हिरासत के दौरान डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन के बाद, वाजपेयी जी ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए खुद को पूरी तरह से राजनीति को समर्पित कर दिया।

चार राज्यों से संसद पहुंचने वाले एकमात्र नेता

अटल जी भारत के इकलौते ऐसे राजनेता थे जिन्होंने चार अलग-अलग राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली) से लोकसभा चुनाव जीता था। यह उनकी अखिल भारतीय लोकप्रियता और स्वीकार्यता का प्रमाण है।

नेहरू की भविष्यवाणी

यह वाकया 1957 का है, जब अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार बलरामपुर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। एक विदेशी डेलीगेशन (प्रतिनिधिमंडल) के भारत दौरे के दौरान पंडित नेहरू ने वाजपेयी का परिचय कराते हुए कहा था- यह लड़का एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। नेहरू, वाजपेयी के शानदार भाषण कौशल, हिंदी पर उनकी पकड़ और संसद में उनके द्वारा उठाए गए तर्कों से बेहद प्रभावित थे। नेहरू की यह भविष्यवाणी लगभग 40 साल बाद सच साबित हुई जब वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने।

सुशासन दिवस

अटल जी के योगदान और सुशासन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के सम्मान में, उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को प्रतिवर्ष 'सुशासन दिवस' (Good Governance Day) के रूप में मनाया जाता है। 

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